अब 'आर बेला नाई'
Rishi Prasad Hindi|February 2023
कोलकाता की एक घटना है। किसी सेठ के यहाँ दूध देनेवाली ग्वालिन आती थी। उसने दूध देने के बाद मुनीम से पैसे माँगे। मुनीम ने कहा : "अभी थोड़ा हिसाब कर रहा हूँ, बाद में आना।”
पूज्य बापूजी
अब 'आर बेला नाई'

वह गयी, उसको जहाँ कहीं दूध देना था, देकर थोड़ी देर के बाद आयी। मुनीम व्यस्त था, उसने फिर कहा : “थोड़ी देर के बाद आना।"

उसको जो कुछ खरीदना था, खरीद के फिर आयी। मुनीम ने कहा : “इतनी जल्दी क्या है, जरा बाद में आना।”

'बाद में, बाद में...' करते-करते शाम हो गयी। ग्वालिन को सूरज डूबता हुआ दिखा। उसने कहा : "मुनीमजी ! हमको पैसा दे दो।”

मुनीम ने कहा : “तू चक्कर मार के आ जा। मैं इतना थोड़ा-सा काम कर लूँ फिर दे दूँगा पैसे।” 

जाकर आयी तब तक सूरज डूब गया। अब तो ग्वालिन ने मुनीम की तरफ ताका कि 'यह काम कब निपटायेगा, कब पूरा करेगा !' ग्वालिन का धैर्य टूटा और उसने झिड़कते हुए कहा : “पैसा दे दो, अब मेरे पास समय नहीं है, जल्दी करो... पैसा दे दो।”

उसकी झिड़कनवाली आवाज सेठ के कानों में पड़ी। ग्वालिन ने फिर कहा : "बाबा ! पैसा दे दो। आर बेला नाई..." यानी अब और समय नहीं है। 

सेठ का कोई पुण्य उदय हुआ। सेठ ने मुनीम को कहा : ‘‘मुनीम ! आर बेला नाई... जिंदगी के दिन बीत गये, काम समेटो।”

मुनीम चौंका। सेठ कहता है : ‘‘इसमें आश्चर्य करने की बात नहीं है, उसने ठीक कहा है। मेरे भी ५० वर्ष हो गये, अब ज्यादा समय नहीं जिंदगी।"

बहुत पसारा मत करो, कर थोड़े की आस। 

बहुत पसारा जिन किया, वे भी गये निराश ॥ 

क्या करिये क्या जोड़िये, थोड़े जीवन काज। 

छोड़ी-छोड़ी सब जात है, देह गेह' धन राज ॥ 

هذه القصة مأخوذة من طبعة February 2023 من Rishi Prasad Hindi.

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