चिकित्सा शिक्षा अब हिन्दी माध्यम में
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केन्द्र में श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से अनेक मिथक टूट रहे हैं। कश्मीर से अनुच्छेद-३७० और धारा ३५-ए का समाप्त होना, अयोध्या में राम मन्दिर का बनना, वाराणसी में काशी विश्वनाथ और उज्जैन में महाकाल मन्दिर व अन्य मन्दिरों के कायाकल्प के बाद एमबीबीएस अर्थात चिकित्सा व अभियांत्रिकी की पढ़ाई हिन्दी माध्यम से होने जा रही है।
प्रमोद भार्गव
चिकित्सा शिक्षा अब हिन्दी माध्यम में

यानी हर क्षेत्र में समरसता के रास्ते तलाशे जा रहे हैं। १६ अक्टूबर को गृहमंत्री अमित शाह भोपाल में चिकित्सा शिक्षा के पहले सत्र की पढ़ाई के लिए तैयार की गई हिन्दी माध्यम की पुस्तकों का विमोचन कर छात्रों को हिन्दी माध्यम से एमबीबीएस करने का रास्ता खोल दिया। देश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई को आठ भारतीय भाषाओं में कराने की स्वीकृति पहले ही दी जा चुकी है। यह एक बड़ी शुरूआत है। इससे उन गरीब और वंचित छात्रों को लाभ मिलेगा जो हिन्दी माध्यम के विद्यालयों से पढ़कर आते हैं। स्पष्ट है, इन छात्रों में दलित और जनजाति वर्ग के छात्र अधिक होते हैं। अतएव इन जातीय समुदायों से आरक्षित सीटों से चुनाव जीत कर आनेवाले सांसद व विधायकों को जरूरत है कि मातृभाषाओं के माध्यम से चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त छात्रों को नौकरी में गारंटी के नीतिगत उपाय के प्रावधान कराएं। जिससे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन जैसे नेता हिन्दी विरोध के बहाने चिंगारी सुलगाएं तो इसे हवा न मिलने पाए। स्टालिन जैसे लोग अंग्रेजी के पक्षधर इसलिए हैं, जिससे हाशिए पर पड़े लोग मातृभाषाओं में पढ़कर देश की मुख्यधारा में नहीं आने पाएं।

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी अनेक विरोधाभासी स्थितियों से जूझ रही है। एक ओर उसने अपनी ग्राह्यता तथा तकनीकी श्रेष्ठता सिद्ध करके वैश्विक विस्तार पाया है और वह दुनिया भर में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जानेवाली भाषा बन गई है। इसीलिए यह जनसम्पर्क और बाजार की उपयोगी भाषा बनी हुई है। इन्हीं कारणों के चलते इसकी अंतरराष्ट्रीय महत्ता स्वीकारी गई। अब संयुक्त राष्ट्र संघ की भी आधिकारिक भाषा हिन्दी बन गई है। ११८ देशों में हिन्दी बोली व समझी जाती है। तो फिर हिन्दी राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा क्यों नहीं बनने जा रही? लगभग १५० देशों के विद्यालय व विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है।

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