स्त्री-मुक्ति: यथार्थ और यूटोपिया
संपादक: राजीव रंजन गिरि
प्रकाशक | अनुज्ञा बुक्स
पृष्ठ: 328 | मूल्य: 499
संपादकीय में ही राजीव रंजन साफ कर देते हैं, कि विचारों में बहस की गुंजाइश हमेशा बनी रहनी चाहिए, जिससे स्त्री मुक्ति की किसी भी बहस की धार कुंद न हो। संकलन स्त्री-विमर्श के अब तक के सफर, उससे जुड़े बहुत से मुबाहिसों, हिंदी साहित्य में स्त्रीवाद के वितान की विस्तार से बात करता है। पुस्तक में विमर्श पर कुछ साक्षात्कार-संवाद और एक महत्वपूर्ण परिचर्चा भी शामिल है, जो पाठको को पूरे परिदृश्य की यात्रा पर ले जाती है। ‘हाशिये का हाशिया’ नाम से खंड में दलित स्त्रियों पर भी मानीखेज लेख हैं। ये लेख दलित स्त्रियों की पीड़ादायक, संघर्ष पूर्ण यात्रा को बहुत विश्वसनीय ढंग से सामने रखते हैं।
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