अपने शैशव काल से ही वर्ष 2024 कई तरह के संकेत और अलग होने का एहसास दिलाने लगा है। आखिर उसे विरासत में पिछले वर्ष 2023 की झीनी-झीनी उम्मीदों और ढ़ेर सारी नाउम्मीदी का झूला जो मिला है। इसका अलहदापन अबूझ नहीं है, क्योंकि इसकी पहली तिमाही के अंत या कहिए दूसरी तिमाही के आगाज के साथ ही अपने देश की राजनीति के दीर्घकालिक बैराज के द्वार खुलने वाले हैं। लोकसभा चुनावों का औपचारिक ऐलान तो मार्च महीने में होगा, लेकिन उसकी तैयारी पिछले साल से ही शुरू हो गई। विपक्ष 28 पार्टियों के 'इंडिया' ब्लॉक से सत्तारूढ़ भाजपा को चुनौती देने का मोर्चा बांध चुका है और उसकी बारीकियां तय करने जा रहा है। दूसरी तरफ भाजपा सांकेतिक महिला आरक्षण विधेयक, जी-20 शिखर सम्मेलन, चंद्रयान की कामयाबी के साथ हिंदी पट्टी के तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान में विधानसभा चुनावों में जीत और अयोध्या में राम मंदिर के 22 जनवरी को उद्घाटन के साथ तैयारी में जुटी है। लेकिन ऐसा लगता है कि पुरानी तैयारियां ही पूरी नहीं पड़ने वाली हैं। इसलिए पिछले साल की सूर्यास्त वेला और नए साल के सूर्योदय के साथ शुरू हुई नई रणनीतियों और सियासी बाजी की बिसात पर नई चालें भी शुरू हो गई हैं।
पिछले साल के निपट आखिरी दिनों में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन और जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी तथा राष्ट्रीय परिषद की बैठक इस मामले में गौरतलब है। दूसरी ओर केंद्रीय एजेंसियों के आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव और झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन को नए नोटिस भी ध्यान में रखिए। उधर, साल की पहली तारीख को अखबारों में पूरे पन्ने के जैकेट विज्ञापन अगर कोई संकेत है, तो जाहिर है तैयारियों की फेहरिस्त में अभी कई चीजें जुड़नी हैं। इन विज्ञापनों में मध्य प्रदेश, राजस्थान वगैरह भाजपा शासित राज्यों में रसोई गैस सिलेंडर 450 रुपये में मुहैया कराने की कथित 'मोदी की गारंटी' का जिक्र है। ऐसा लगता है कि अब बिसात पर मोहरे बैठाने का दौर शुरू हो गया है।
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
आजाद तवायफ तराना
तवायफों पर आई नई वेबसीरीज हीरामंडी ने फिर कोठेवालियों और देवदासियों के साथ हिंदुस्तानी सिनेमा के रिश्तों की याद दिलाई
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टीम इंडिया में अर्जुन तो बहुत, उन्हीं को संवारने के लिए एक ऐसे कोच की तलाश, जो टीम को तकनीकी-मानसिक मजबूती दे सके
ममता दीदी की दुखती रग
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हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
तीसरी बारी क्यों
विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार और संविधान बदलने तथा आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर देश की जनता को गुमराह नहीं कर सकता
क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा