अंतर बस इतना है कि पिछली है सदी के नब्बे के दशक में जो पक्ष सत्ता में था, वह इन दिनों विपक्ष में है और जो विपक्षी भूमिका में थे, उनके हाथ न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि देश की कमान है। तब और अब में अंतर कुछ और भी हैं। तब राममंदिर के लिए आंदोलन चल रहा था और अब रामचरित मानस को सवालों के घेरे में लाने की कोशिश हो रही है। समाजवादी पार्टी जिस तरह रामचरितमानस और तुलसी दास पर सवाल उठाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के बचाव में उतरी है, उससे राममंदिर आंदोलन के दौरान के उसके कदमों की याद ताजा हो रही है। तब मुलायम सिंह यादव ने बतौर मुख्यमंत्री कहा था कि बाबरी ढांचे के पास परिंदा भी पर नहीं मार सकता और अब उनके उत्तराधिकारी अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्य को एक तरह से शह दे रहे हैं। यह शह इतनी है कि उनकी मुखालफत करने वाली अपनी पार्टी की दो महिला नेताओं रोली मिश्रा और ऋचा सिंह को पार्टी से निकालने में देर नहीं लगाई। उ.प्र. की तरह बिहार की समाजवादी राजनीति में अब तक कोई ऐसा निष्कासन नहीं हुआ है। लेकिन राजनीति की आंच पर रामचरितमानस की चरित्र हत्या करने की शुरुआत बिहार से ही हुई है। दिलचस्प यह है कि राजद के सदस्य और राज्य सरकार के मंत्री जिस चंद्रशेखर ने रामचरितमानस पर सवाल उठाया, उनका अब तक राजनीतिक रूप से कुछ भी बाल बांका नहीं हुआ है। चाहे स्वामी प्रसाद मौर्य हैं या फिर चंद्रशेखर, उन्हें उनके राजनीतिक नेतृत्व की ओर से लगातार शह मिल रही है। उन्हें रोकने की कोशिश नहीं हो रही है। कुछ महीने पहले बिहार में हुए विधानसभा उपचुनाव में प्रचार के दौरान राजद नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सवर्ण वोटरों को रिझाने की कोशिश करते नजर आए थे। तब ऐसा लगा था कि राजद अपने पारंपरिक वोट बैंक पिछड़ा, यादव और मुस्लिम के बाहर भी अपना आधार बढ़ाने की कोशिश में है। उ.प्र. के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी ब्राह्मणों को लेकर जिस तरह राजनीतिक सहानुभूति दिखाने की कोशिश विपक्षी खेमे से हुई, तब भी माना गया कि समाजवादी राजनीति अपने पारंपरिक वोट बैंक के साथ ही सवर्ण समाज को भी आकर्षित करने की दिशा में काम कर रही है। अखिलेश की इन्हीं कोशिशों के चलते मीडिया और राजनीतिक समीक्षकों का एक वर्ग तकरीबन मान चुका था कि अखिलेश की वापसी हो रही है।
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जग कल्याण के लिए अवतरित हुए थे भगवान झूलेलाल
यह हिन्दुस्तान की खूबसूरती ही है कि यहाँ सभी मजहबों के तीज-त्योहार उत्साह, सदभाव, आस्था के साथ मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है झूलेलाल जयंती। भारत और पाकिस्तान के साथ ही दुनिया भर में जहां भी सिंधी समाज के लोग रहते हैं वो झूलेलाल जयंती पूरे उत्साह के साथ मनाते है।
अदालत की बेंच की तरह काम करता है चुनाव आयोग
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अप्रत्याशित रूप से इस्तीफा दे दिया था। इस इस्तीफे ने आयोग के भीतर सर्वसम्मति से होने वाले कामकाज पर सवाल खड़े कर दिए। वैसे, कुछ बरसों के अंतराल में संस्था के भीतर गंभीर मतभेद सामने आते रहे हैं।
भाजपा के राजनीतिक करिश्मे के कर्णधार अटल बिहारी वाजपेयी
पूर्व सांसद एवं पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा देश में जनसंघ का पहला अपना निजी कार्यालय जो ग्वालियर में बना था, उसमें रहता था, मैं भी स्वर्गीय शेजवलकर जी के साथ बैठक में बतौर पत्रकार चला गया।
धर्म आधारित आरक्षण में सेंधमारी का मुद्दा
अल्पसंख्यका बनाम मुस्लिमों को पिछड़ों, दलित और आदिवासियों के संविधान में निर्धारित कोटा के अंतर्गत 4.5 प्रतिशत आरक्षण देने की केंद्र सरकार की मंशा रही थी। लेकिन न्यायालय के हस्तक्षेप के चलते इस मंशा को पलीता लग गया था।
बंगाल में इस बार रोचक होगा चुनावी मुकाबला
यह स्वतंत्र भारत के इतिहास का पहला अवसर है जब किसी राजनीतिक दल के सांसदों ने चुनाव आयोग का दरवाजा इसलिए खटखटाया कि केंद्रीय एजेंसियों सीबीआई ईडी और आयकर विभाग के प्रमुखों को बदल जाए।
राजनीतिक बयानों की चल रही है आंधी
देश में लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच राजनीतिक दलों में बयानों की आंधी सी चल रही हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपने आपको आम जनता का हितैषी सिद्ध करने का प्रचार कर रहे हैं। इन बयानों में कहीं कहीं राजनीति की मर्यादा का भी उल्लंघन भी होता दिख रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान सभी दल अपने अपने हिसाब से ढोल पीटकर जनता को अपने पाले में लाने की कवायद कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि राजनीतिक दलों द्वारा जो बयान दिए जा रहे हैं, वह देखने में तो ऐसा ही लगता है कि यह सब बातें अप्रमाणिक सी लगती हैं।
अन्नामलाई की भाजपा को दक्षिण में कमल खिलाने की गारंटी?
पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने इस धारणा को बदल दिया है और फिर पूर्व आईपीएस अधिकारी के अन्नामलाई को तमिलनाडु का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद द्रविड़ पार्टी के प्रभुत्व वाले दक्षिणी राज्य में बीजेपी की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं।
देश में 83 प्रतिशत है बेरोजगारी!
हालांकि हम लोग एक भयावह रूप से हिंसाग्रस्त विश्व में जी रहे हैं, वह जिसमें लगातार होने वाले युद्ध, सैन्यीकरण, नए किस्म का अधिनायकवाद, बढ़ती आर्थिक असमानता, पर्यावरण संकट और सामाजिक कारणों से बना मानसिक संताप इसका चरित्र बन गया है और मानो इन सबके बीच 'खुशी' ढूंढ़ना एक अनन्त खोज बन गई है।
नौ शक्तियों का मिलन पर्व है नवरात्रि
रतीय समाज में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है, जो आदि शक्ति की पूजा का पावन पर्व है। नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न नौ स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं और इसीलिए नवरात्रि को नौ शक्तियों के मिलन का पर्व भी कहा जाता है।
भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना ही संघ का है मुख्य लक्ष्य
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक नागपुर में दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को सम्पन्न हुई है। इस बैठक में पूरे देश से 1500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और श्रीराम मंदिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर विषय पर एक प्रस्ताव भी पास किया गया।