कोविड महामारी ने मानवता के सामने अप्रत्याशित चुनौती पेश की और यह बात अच्छी तरह समझा दी कि हमारी बेहतर माली हालत के लिए अच्छी सेहत बेहद जरूरी है – देशों ही क्यों, पूरी दुनिया के लिए. यह बीती दो सदियों का सबसे बड़ा आर्थिक झटका था, जिसमें वैश्विक अर्थव्यस्था ने 8 खरब डॉलर से ज्यादा गंवाए. इतना ही नहीं, इसका दंश गरीब देशों और लोगों ने झेला, जिससे दुनिया में गैरबराबरी और बढ़ गई. अंदेशा यह भी है कि बड़े पैमाने पर स्कूल बंद होने से प्रभावित छात्रों की मौजूदा पीढ़ी 17 खरब डॉलर के बराबर की जिंदगी भर की कमाई गंवा सकती है. कोविड ने यह भी दिखाया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में किए गए निवेश से मिलने वाला फायदा बहुत ज्यादा हैं और वायरस के प्रभावों पर फतह पाने का ज्ञान और औजार विज्ञान से ही आते हैं. इसने देशों के लिए जनस्वास्थ्य और प्राथमिक स्वास्थ्य संबंधी देखभाल, खासकर इसे अंजाम देने वाले लोग और ऑक्सीजन सरीखी अनिवार्य वस्तुओं में निवेश की जरूरत पर बल दिया. बदकिस्मती से इसने विश्वव्यापी खतरे का जवाब देने के मामले में अंतरराष्ट्रीय एकजुटता की कमी और भूराजनीति की भूमिका को भी उघाड़कर रख दिया. राष्ट्रवाद और अदूरदर्शी नीतियों के चलते तमाम समुदायों को भारी असमानताएं झेलनी पड़ीं. सोशल मीडिया के जमाने की इस पहली महामारी का नतीजा 'इन्फोडेमिक' या सूचना - महामारी की शक्ल में सामने आया, जिसमें कई भ्रामक और गलत जानकारियां शामिल थीं, जिन्होंने लोगों को मास्क पहनने और टीके लगवाने सरीखे सुरक्षा के तमाम उपायों के बारे में गुमराह किया.
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