अनिल चौधरी हरियाणा के सिरसा से अपने भतीजे विकास के साथ आए हैं. वे विकास के लिए एक अच्छी नस्ल का घोड़ा खरीदना चाहते हैं. उन्हें मथुरा के व्यापारी रिपु चौधरी का मारवाड़ी नस्ल का एक घोड़ा पसंद आ गया है. रिपु उस घोड़े की कीमत 21 लाख रुपए बता रहे हैं. विकास वह घोड़ा पांच लाख में खरीद लेना चाहते हैं. रिपु उन्हें घोड़े की खूबियां बता रहे हैं और उनका स्टाफ घोड़े को दौड़ाकर दिखा रहा है. यह पूरा कारोबार बिहार के सोनपुर में हो रहा है. बेचने वाले रिपु और खरीदार अनिल, एक-दूसरे से करीब 400 किमी दूर रहने वाले हैं, पर वे मिल रहे हैं उससे करीब हजार से पंद्रह सौ किमी दूर एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में मशहूर सोनपुर मेले में.
हिंदुओं के शैव और वैष्णव समुदाय की मिलन स्थली के नाम से मशहूर हरिहर क्षेत्र का यह मेला काफी पुराना माना जाता है. यहां सदियों से युद्ध और खेतिहर उपयोग के लिए जानवर बिकते रहे हैं. यह भी कहा जाता है कि मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनानी सेनापति सेल्युकस से समझौते के लिए इसी मेले से पांच सौ हाथी खरीदे थे. वैसे इसका कोई पुष्ट ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. मगर औरंगजेब के जमाने में यह मेला काफी मशहूर था और यहां तातार देश (मध्य एशिया) के व्यापारी भी सामान बेचते थे. इसका जिक्र यूरोपियन यात्री मार्शल ने अपनी किताब में किया है. सारण जिले के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में जिक्र है कि 1857 की क्रांति के सेनानी बाबू कुंवर सिंह भी अपनी सेना के लिए घोड़े और हाथी सोनपुर मेले से खरीदते थे. हाल के दिनों में कानूनी वजहों से हाथियों की बिक्री पर तो रोक लग गई है, मगर घोड़े अभी भी यहां खूब बिकते हैं.
संख्या के लिहाज से यह घोड़ों का संभवत: देश का सबसे बड़ा मेला है. यहां इस साल जरूर थोड़े कम घोड़े आए हैं. अमूमन यहां हर साल चार से पांच हजार तक घोड़े आते हैं. सारण के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में 1920-1959 से यहां पहुंचने वाले घोड़ों के आंकड़े दिए गए 1931-40 के बीच इस मेले में 47,149 घोड़े पहुंचे थे.
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