ऐसे ही डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की मनोवैज्ञनिक देहरी 80 है. यह भी भूल जाइए कि पिछले मार्च में डॉलर के मुकाबले रुपया 75 पार कर गया तो वह इतिहास में सबसे निचले स्तर को छू गया था. फिर भी, भारतीय मुद्रा जब 19 जुलाई को थोड़ी देर के लिए 80 के पास पहुंची, और फिर अगले दिन, वह लक्ष्मण रेखा पार कर गई तो सरकारी हलकों सहित चारों ओर अफरा-तफरी मच गई.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने 18 जुलाई को संसद में अपने लिखित बयान में रुपए की गिरावट (उस दिन 79.96) के लिए यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की चढ़ती कीमतों और वैश्विक वित्तीय संकट को दोषी बताया. इस तरह उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार को जिम्मेदारी से मुक्त कर लिया, जिस पर किसी तरह के दोष का वे से भी हिस्सा हैं. उन्होंने यह भी बताया कि ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी बड़ी मुद्राएं रुपए से ज्यादा टूटी हैं और कि, दरअसल भारतीय मुद्रा तो इन मुद्राओं के मुकाबले कुछ मजबूत ही हुई है. वाकई, ब्रिटिश पाउंड 31 दिसंबर, 2021 और 15 जुलाई, 2022 के बीच 12.27 फीसद और इसी अवधि में यूरो 11.3 फीसद टूटा, जबकि रुपया छह फीसद ही गिरा.
वित्त मंत्री कुछ बचाव की मुद्रा में दिखीं तो उसकी वजह प्रधानमंत्री ही हैं. उन्होंने बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री 2013 में रुपए में तेज गिरावट के लिए तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आड़े हाथों लिया था. अब यह तेवर दूसरी ओर था. दिग्गज कांग्रेसी सांसद शशि थरूर ने समाचार एजेंसी एएनआइ से कहा, "मोदी जी ने ही 2014 में इसे चुनावी मुद्दा बनाया था. तथ्य तो यह है कि ऐसी चर्चाएं थीं कि वे सत्ता में आए तो रुपए को मजबूत करेंगे क्योंकि इससे पता चलता है कि कमजोर सरकार है तो रुपया कमजोर है...लेकिन मजबूत सरकार हमें क्या दे रही है? रुपया और कमजोर हो गया." कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर लिखा, "रुपया पहुंचा 80. रसोई गैस 1,000 रु. के पार पहुंची. जून में 1.3 करोड़ लोग बेरोजगार हैं... सरकार को जवाब देना होगा."
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