अभिभावक बनना दुनिया की सबसे बड़ी खुशी होती है। नन्हे कदमों के आने भर से परिवार पूरा हो जाता है। सच है, पर यह भी उतना ही सच है कि तीसरे के आने के बाद दो लोगों के बीच में भी दूरियां आने लग जाती हैं। लगभग तीस साल तक शोधकर्ताओं के अध्ययन में जो निर्णायक तथ्य सामने आए, वह यह है कि रिश्ते की संतुष्टि में गिरावट की दर निसंतान जोड़ों की तुलना में उन जोड़ों में लगभग दोगुनी है, जिनके बच्चे हैं। इतना ही नहीं संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर में लोग बच्चे को जन्म न देना चुन रहे हैं। अमेरिकी जनगणना के अनुसार निसंतान अमेरिकी महिलाओं की संख्या में दो पीढ़ियों में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है। भारत में भी बच्चा न चाहने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यकीनन आंकड़े चौकाने वाले हैं। लेकिन इस बड़े बदलाव के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है बच्चे के बाद वैवाहिक जिंदगी में बढ़ने वाली उथल-पुथल।
इस बात की तस्दीक रिलेशनशिप कोच ईला जैन भी करती हैं। वह कहती हैं कि इस दौरान मानसिक, शरीरिक सरीखे तमाम बदलाव महिला के शरीर में आते हैं। अकसर पुरुष इन बदलावों को समझ नहीं पाते। गर्भावस्था और उसके बाद ऑक्सीटोसिन जिसे हम प्यार का हार्मोन भी कहते हैं अधिक मात्रा में स्त्रावित होता है। जिसके चलते मां अपने बच्चे से जुड़ जाती है। उसका पूरा ध्यान उस पर ही रहता है। नतीजा, अभी तक का सबसे जरूरी इंसान यानी पति खुद को नजअंदाज पाता है। खुद को अकेला महसूस करता है। बच्चे की ढेरों जिम्मेदारियों में फंसी मां भी असहाय होती है। ऐसे में चिड़चिड़ापन का ठीकरा फूटता है एक-दूसरे पर मां-बाप शिकायतों से भर जाते हैं और इसका असर धीरे-धीरे आपसी रिश्ते पर पड़ने लगता है।
ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि पार्टनर एक-दूसरे को समझें। खासतौर से पुरुष। उन्हें समझना होगा कि उनकी पत्नी शारीरिक, मानसिक बदलावों से जूझ रही है। साथ ही महिला को यह समझना होगा कि बच्चे के अलावा भी उसकी दुनिया है। दोनों को बढ़ी हुई जिम्मेदारी को साझा करना होगा। आप दोनों को ख्याल रखना होगा कि विवेक के साथ आने वाली जिंदगी में बढ़ाए गए कदम मुश्किल से मुश्किल राह को भी आसान बना सकते हैं।
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