अब तो उन के मातापिता उन्हें फिर से पटाखे खरीदने के लिए पैसे देने वाले नहीं थे, लेकिन शुभम और श्याम चालाकी में किसी लोमड़ी से कम नहीं थे. उन्होंने फैसला किया कि वे अपनीअपनी गुल्लक फोड़ कर उस में से पैसे निकालेंगे और उन पैसों से शहर जा कर पटाखे खरीद कर लाएंगे. दोनों की गुल्लक में कुल मिला कर 767 रुपए निकले.
उन दोनों ने फैसला किया कि दीवाली से एक दिन पहले वे शहर जाएंगे. शहर दूर था और जंगल का चक्कर काट कर वहां जाना पड़ता था. इसलिए शुभम और श्याम ने यह फैसला किया कि वे साइकिल से शहर जाएंगे और शाम होने तक लौट आएंगे.
अगले दिन जब वे शहर से पटाखे खरीद कर ला रहे थे, शहर में भीड़ के कारण उन्हें देर हो गई. यदि वे उसी लंबे रास्ते से वापस जाते तो घर पहुंचने से पहले अंधेरा हो जाता.
यही सोच कर शुभम ने श्याम से कहा, “श्याम, हमें अंधेरे से बचने के लिए जंगल के अंदर से जाना चाहिए, वह गांव पहुंचने का छोटा रास्ता है?”
“लेकिन शुभम, जंगल से हो कर गुजरने में जंगली जानवरों का भी तो डर है,” श्याम ने डर दिखाया.
"वह तो है, श्याम, लेकिन एक बात मैं जानता हूं कि दिन में जंगली जानवरों का डर कम होता है और हमारे पास पिस्तौल भी तो हैं, फिर डर किस बात का?” शुभम ने खिलौना पिस्तौल हवा में लहराते हुए कहा.
“यह बात तो तुम सही कहते हो, शुभम भले ही ये पटाखे छोड़ने वाली नकली पिस्तौल हैं, लेकिन जानवरों को क्या पता कि असली हैं कि नकली. वे तो पिस्तौल देखते ही डर कर भाग जाएंगे," श्याम हंसा.
“वाह श्याम, वाह, क्या बात कही तुम ने, हम इन पिस्तौलों को अपनी बैल्ट में लगा लेंगे और पक्के शिकारी बन जाएंगे. शिकार मतलब जंगली जानवर को देखते ही उस पर गोली चला देंगे और अगले ही पल शिकार ढेर," शुभम ने अपनी पिस्तौल से निशाना साधने का अभिनय करते हुए कहा.
अब शुभम और श्याम जंगल के रास्ते पर संभल कर साइकिल चलाने लगे, लेकिन जैसे ही वे घने जंगल में पहुंचे, राजा शेरसिंह के गश्त लगा रहे 2 सैनिकों ने उन्हें देख लिया. एक सैनिक था जैरी जिराफ और दूसरा था जंपी बंदर. जैरी के हाथ में लंबा भाला और जंपी के हाथ में मोटी गदा थी.
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