Rajasthan Diary Magazine - April 2021
Rajasthan Diary Magazine - April 2021
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In this issue
राजस्थान विधान सभा उपचुनाव
- किसकी कितनी बिसात
बीकानेर की जीवंत होली
कोरोना की दूसरी लहर
नागौर: उजास ने बदली वर्णमाला
बीरमदेव-फिरोजा: मोहब्बत की एक भूली बिसरी दास्तान
दिल्ली डायरी: एक चुस्की चाय
कालगणना का केंद्र है संक्सर
विक्रमादित्य के शासन से पहले युधिष्ठिर संवत, श्रीराम संवत, नक्षत्र संवत और ब्रह्म संवत प्रचलन में थे। कालांतर में विक्रमादित्य के लोकोत्तर प्रभाव से उनके नाम से विक्रम संवत्सर शुरू हुआ।
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बीकानेर :जीवंत होली का शहर हुड़दंगी माहौल में आज भी जिंदा है 300 साल पुरानी परंपराएं
होली की हुड़दंग के बीच गाजे-बाजे से निकलती है पुष्करणा समाज के हर्ष जाति के दूल्हे की बारात
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दूसरी लहर का कहर
जब देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हों, स्कूल-कॉलेजों में वार्षिक परीक्षाओं की तैयारियां चल रही हों, यातायात के तमाम साधन बहाल हो चुके हों और सड़कों-बाजारों पर शादियों के सीजन वाली रौनक लौट चुकी हो तो किसी के लिए भी यह मानना मुश्किल नहीं होगा कि देश में सबकुछ सामान्य चल रहा है।
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किसकी कितनी बिसात
सरकार के कार्यकाल के बीच में यदि कोई उप चुनाव हो तो इसे सियासी पंडित इसे सत्ता का सेमीफाइनल कहते हैं। राजस्थान में तीन सीटों पर होने वाले उप चुनाव को भी राजनीति की जानकार यही नाम दे रहे हैं।
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बाबा श्याम के दरबार में नवाया लाखों भक्तों ने शीश
• सज-धजकर विराजे थे बाबा श्याम • भक्तों ने किया अपने आराध्य का दीदार • रवाटूश्यामजी का लक्वी मेला सम्पन्न
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बीस में इक्कीस
2020 कोरोना की वजह से हर मोर्चे पर निराशाजनक रहा लेकिन इस मुश्किल दौर में भी राजस्थान की कई शख्सियतों ने चौकाने वाला प्रदर्शन किया
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चार दशक पहले ही महाशय धर्मपाल को नागौर खींच लाई पानमैथी की महक
• अमर हो गई महशियां दी हट्टियां.. क्योंकि असली मसाले सच सच...एमडीएच • कोचवान से लेकर एमडीएच के मालिक तक का सफर तय करने वाले गुलाटी का नागौर से था आत्मीय जुड़ाव
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गांवों में भाजपा को पंचायती, शहरों में कांग्रेस भारी
लंबे अरसे से यह माना जाता है कि गांवों में कांग्रेस और शहरों में भाजपा की पकड़ मजबूत है लेकिन इस बार के पंचायत व निकाय चुनाव ने इस मिथक को तोड़ दिया है। हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा ने बाजी मारी है जबकि निकाय चुनाव में कांग्रेस भारी पड़ी है।
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सिंधु बोर्डर पर किसान
देश की राजधानी दिल्ली की धड़कनें इन दिनों थम सी गई हैं, न जाने क्या होने वाला है। रजाई में दुबके लोग हों, पान की दुकान हो या गली के नुक्कड़ों पर अलाव तापते लोग हों सबचर्चा का विषय है किसान आंदोलन जो कि 26 नवंबर से सिंधु बोर्डर पर घेरा डाले बैठे हुए हैं, इसमें पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश के किसान हैं जो केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और हमारी पूरी पुलिस फोर्स कभी अश्रु गैस के गोले छोड़कर डरा रही है तो कभी तेज पानी कि बौछार से खदेड़ रही है।
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फिर 'ट्रैक पर गुज्जर
राजस्थान सरकार की तरफ से कई बार फैसले किए जा चुके हैं। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति द्वारा घोषित आंदोलन की तारीख 1 नवम्बर से ठीक पहले 31 अक्टूबर को गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति और अशोक गहलोत सरकार के बीच 14 बिंदुओं पर सहमति बनी। संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला इस वार्ता में शामिल नहीं हुए, वार्ता में गुर्जर नेता हिम्मत सिंह के गुट के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इस बैठक में गुर्जरों के लिए राज्य सरकार ने बड़े निर्णय किए। इसके बावजूद गुर्जर ट्रैक पर उतर गए।
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फिर आ गए नीतिश कुमार
बिहार के एनडीए में नीतीश बाबू लोगों के गुस्से का शिकार हुए। भाजपा का चेहरा नरेंद्र मोदी के रूप में था। इन परिणामों से यह भी लगता है कि जनता का भाजपा पर भरोसा बरकरार रहा और उस भरोसे का कुछ लाभ जद-यू को भी मिला। लालू परिवार अभी भी बिहार की राजनीति को प्रभावित करता है। जंगलराज की यादें अपनी जगह, लेकिन लालू परिवार का करिश्मा बरकरार है। कुछ राजनीतिक विश्लेषण राजद की सफलता का श्रेय तेजस्वी यादव को देना चाहते हैं, लेकिन इसका श्रेय बहुत बड़ी सीमा तक लालू को ही जाता है। कहा जा रहा है कि तेजस्वी ने पोस्टरों में लालू की तस्वीर भी नहीं लगाई थी, यह उस बड़ी रणनीति का हिस्सा हो सकता है जिसके चलते लालू स्वयं ही बेटे को भविष्य का नेता स्थापित करना चाहते हैं।
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दिवाली पर प्रदूषण का साया क्यों?
तेजोमय उल्लास के महापर्व दीपावली के आते ही पर्यावरण प्रदूषण की बात जोरों से उठती है। एक शाश्वत सवाल हर बार उठाया जाता है कि दीपावली पर आतिशबाजी करने की मान्यता का क्या कोई धार्मिक इतिहास है? माता लक्ष्मी को पूजने के पुरातन इतिहास से आतिशबाजी कब व कैसे जुड़ी? यदि यह धर्मशास्त्र द्वारा बनाई रीति नहीं है तो दीपावली पर पटाखों का चलाना कैसे रस्म बनता गया? इस सवाल का जवाब जरूरी है कि पारंपरिक पर्व पर प्रदूषण का साया क्यों पड़ा हुआ है?
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पाक की नापाक जासूसी जंग
तमाम सुरक्षा व्यवस्थाओं में सेंधमारी कर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई किस कदर हमारी सैन्य जानकारियां बटोर लेती है, इसको सीआईडी के ताजा खुलासे से जाना जा सकता है। सीआईडी ने एक नागौर जिला निवासी सैन्य कार्मिक को गिरफ्तार किया है। बाड़मेर में भारत माला प्रोजेक्ट में जेसीबी ड्राइवर रोशनदीन भी जासूसी करने के मामले में एटीएस के हत्थे चढ़ा है।
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जोधपुर रिसायत के विलय में सिगरेट लाइटर की भी भूमिका
राजस्थान के एकीकरण की दिलचस्प कहानियां
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रोशनी का दिव्यबोध फैलाती दीपावली
लक्ष्मी की आराधना होनी चाहिए क्योंकि लक्ष्मी का संबंध धन से नहीं वरन उसकी पवित्रता से है। लक्ष्मी अशुद्ध, अपवित्र और अप्राकृतिक से कभी नहीं जुड़ती। इस नाते जिसका आस्वादनभोजन अशुद्ध है, जिसकी भाषा-वाणी अपवित्र है, जिसका संस्कार-विहार अप्राकृतिक है, वह लक्ष्मी का आशीर्वाद कैसे प्राप्त कर सकता है। सच्ची और स्थाई लक्ष्मी वही है जो शील और मर्यादा से पायी जाए।
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खुशियों की जगमग में भांति-भांति की रीत
आज भी प्रचलन में है मारवाड़मेवाड़ की ये कुछ खास परम्पराएं
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कोरोना काल में पटाखों पर न देंजोर, सबसे बुरा है इसका शोर
इस बार दीपावली केवल दीप जलाकर ही मनाएं तो यह मानवता की सेवा होगी। हमने और आपने अगर इस बार पटाखे जलाए तो कोविङ-19 के दौर में यह धूमधड़ाका सभी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुआं में और जहर घोल देगा और ऑक्सीजन लेने में लोगों को दिक्कत होगी। पटाखे न जलाकर हम कई लोगों की जान जोखिम में डालने से बच जाएंगे।
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ऑपरेशन लोटस की आहट
क्या वाकई में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने की किसी योजना पर अंदरखाने काम चल रहा है या कटारिया ने सहज तरीके से कोई बयान दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जुलाई के महीने में चले ऑपरेशन लोटस की जिस तरह से भद्द पिटी, उसके बाद इसकी संभावना न के बराबर है कि इस प्रकार की कोई कोशिश फिर से की जाएगी। विश्लेषक इसके पीछे कई पुख्ता कारण बताते हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि न तो राजस्थान मध्यप्रदेश है और न ही अशोक गहलोत कमलनाथ हैं।
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आजादी के पीछे लाखों बेटे-बेटियों का त्याग और बलिदानः पीएम
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत ने इस बार अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया और देश के संबोधित किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने तकरीबन डेढ़ तक भाषण दिया। बतौर प्रधानमंत्री सातवीं बार लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर, आत्मनिर्भर भारत, कोरोना संकट, आतंकवाद, रिफॉर्म, मध्यमवर्ग और कश्मीर का विशेष रूप से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आजादी के पीछे लाखों बेटे-बेटियों का त्याग और बलिदान है। आजादी का पर्व नए संकल्पों के लिए ऊर्जा का अवसर है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में बिना नाम लिए चीन और पाकिस्तान पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि विस्तारवाद की सोच ने विस्तार के बहुत प्रयास किए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विस्तारवाद की सोच ने सिर्फ कुछ देशों को गुलाम बनाकर ही नहीं छोड़ा, बात वही पर खत्म नहीं हुई। भीषण युद्धों और भयानकता के बीच भी भारत ने आजादी की जंग में कमी और नमी नहीं आने दी।
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ऑनलाइन शिक्षा : गरीबों की मुसीबत
स्मार्टफोन की कमी ऑनलाइन स्कूली शिक्षा के लिए एकमात्र बाधा नहीं है। धीमा इंटरनेट भी एक बड़ा मुद्दा है। इसीलिए अनेक जगहों पर खराब कनेक्शन, फोन की लागत और महंगे डाटा प्लान के अलावा स्क्रीन पर अत्यधिक समय बिताने की चिंताओं के बीच पढ़ाने के तरीके को वापस ऑफलाइन की तरफ जाने पर विचार करने पर मजबूर किया जाने लगा है।
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भारतीय मूल की कमला हैरिस बनी अमेरिका में उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने भारतीय मूल की कमला हैरिस को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है. बाइडेन ने ट्वीट कर यह जानकारी दी और कमला हैरिस को बहादुर योद्धा और अमेरिका के बेहतरीन नौकरशाहों में से एक बताया. कमला हैरिस ने ट्वीट करके बाइडेन का धन्यवाद किया है.
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पहली बार डीजे से ड्रोन जैसे हथियार कोविड काल में आई टिड्डी महामारी
एक तो पहले ही किसान कोरोना वायरस और लॉकडाउन की मार झेल चुके हैं, उसके ऊपर टिड्डी दलों का आतंक राजस्थान समेत उत्तर भारत के किसानों के लिए कोढ़ में खाज बन गया। टिड्डी दल को भगाने के लिए हेलीकॉप्टर से लेकर ड्रोन और डीजे से लेकर थाली-पीपे बजाने के जतन किए गए। कृषि विभाग और टिड्डी नियंत्रण संगठन अब इस आफत से निजात पाने के तमाम दावे कर रहे हैं, लेकिन मानसून के बाद लहलहाते खेतों में फाके निकलने से किसानों को फिर से चिंता में डाल दिया है। यानी किसानों को कोरोना वायरस अटैक से ज्यादा खतरा खेतों में टिड्डी अटैक से हैं।
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प्रदेश कांग्रेस की कमान शेखावाटी के लाल के हाथ
सरकार बनने के बाद से ही संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए अब 'गोविन्द पर भरोसा किया है। सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से बर्खास्त करने के बाद फिर से सात साल बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान शेखावाटी के लाल के हाथों में आ गई है। अपनी मेहनत के बलबूते पर छात्र राजनीति से प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष पद पर पहुंचने वाले श्री डोटासरा को सत्ता और संगठन को संभालने का लंबा अनुभव है, साथ ही कुशल वक्ता एवं हाजिर जवाब होने की खूबी से उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने में आसानी होगी।
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संघर्ष,समर्पण... सस्पेंस!
राजस्थान में एक महीने से ज्यादा लंबी चली सियासी खींचतान का पटाक्षेप हो गया है। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के जयपुर लौटने के बाद अशोक गहलोत सरकार विधानसभा में ध्वनिमत से बहुमत साबित करने में सफल रही। हालांकि राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा घटनाक्रम सियासी ड्रामे का इंटरवल मात्र है, देर-सवेर खेमेबाजी फिर से उभरेगी। गौरतलब है कि पार्टी हाईकमान ने सचिन पायलट की मांगों पर गौर करने के लिए अहमद पटेल, के सी वेणुगोपाल राव और अजय माकन की सदस्यता वाली कमेटी का गठन किया है। साथ ही प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की जगह अजय माकन को जिम्मेदारी सौंपी है। काबिलेगौर है कि जयपुर आने से एक दिन पहले सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी। पायलट गुट का दावा है कि इस मुलाकात में उनकी मांगों और शिकायतों को तफसील से सुना। इस मुलाकात के बाद प्रदेश प्रभारी के पद से अविनाश पांडे की छुट्टी और तीन सदस्यीय कमेटी के गठन को पायलट खेमा अपनी जीत के तौर पर प्रचारित कर रहा है। क्या वाकई में ऐसा है?
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तीर्थस्थल: आस्था के साथ अर्थव्यवस्था पर कोरोना का आघात
आपके गांव-शहर में घर के निकट छोटा सा मंदिर हो अथवा आस्था के केन्द्र माने जाने वाले बड़े मंदिर। राजस्थान के सालासर बालाजी, खाटूश्यामजी सरीखे प्रमुख मंदिर हो या फिर वैष्णोदेवी- तिरुपति बालाजी जैसे देश के प्रमुख तीर्थस्थल। कोरोना वायरस के आघात से कोई धार्मिक स्थल अछूता नहीं है। यानी सामाजिक दूरियों के साथ धार्मिक दूरियां भी प्रभावी है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए मंदिरों में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पिछले डेढ़ माह से प्रतिबंध है, इससे श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शनों से महरूम है। लॉकडाउन ने इन मंदिरों और तीर्थस्थलों के साथ ही इन प्रमुख शहर-कस्बों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है।
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मझधार में मजदूर
भूख, तड़प और जिल्लत के एहसास के साथ अपने-अपने गांव लौट रहे मजदूर कह रहे हैं कि वे अब शहर आने से पहले सौ बार सोचेंगे। भले ही गांव, घर के आसपास के इलाकों में पर्याप्त संसाधन, स्रोत और औद्योगिक प्रतिष्ठान नहीं हैं, लेकिन वहां भूखमरी नहीं है। यदि ऐसा हुआ तो शहरों की क्या दुर्दशा होगी? यदि सभी मजदूर गांव में ही ठहर गए तो वहां बेकारी का क्या हाल होगा?
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भारत में लॉकडाउन: कितना सफल,कितनी चुनौतियां
लॉक डाउन के कारण दुनिया के तमाम मुल्कों के सामने आर्थिक संकट, बेरोजगारी, भूखमरी सहित कई संकट उठ खड़े हुए हैं। लेकिन कोरोना वायरस से निपटने का अभी यही एकमात्र रास्ता है, क्योंकि कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध नहीं होने और वायरस की ऊंची संक्रमण दर की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग ही इससे लड़ने का शायद एकमात्र रास्ता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या लॉक डाउन ही कोरोना से लड़ने का जरिया है। सवाल ये भी कि लॉकडाउन से कोरोना मामलों में कमी आई या नहीं?
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बाजार को कितना डसेगा कोरोना?
कोरोना वायरस से बचने के लिए लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। कई क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी विकास दर के अपने अनुमानों में संशोधन किया है।
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लॉकडाउन ने दिखाया आसमान का असल नीला रंग प्रकृति को रीबूट करने का वक्त है लॉकडाउन
दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों को असमय मौत की नींद सुलाने वाला वायु प्रदूषण, कोरोना महामारी से हार गया। दुनियाभर में मौत का तांडव करने वाले कोरोना वायरस से सुरक्षा के लिए किया गया लॉकडाउन पर्यावरण के लिए संजीवनी बन गया। अब से करीब एक माह पहले तक वायु प्रदूषण से चिंतित दुनियाभर के वैज्ञानिकों को लॉकडाउन ने प्रदूषण को काबू में रखने का नया रास्ता सुझा दिया है।
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लॉक डाउन में बार-बार पलायन... साजिश तो शायद नहीं
लॉक डाउन लागू होने के बाद बड़ी संख्या में मजदूर निकलने लगे, पहले दिल्ली और लॉकडाउन 2.0 के बरइ मुम्बई, सूरत में अचानक से मजदूरों का पलायन होना कोरोना के संकट को और बढ़ाने में सहायक बन गया। देश के विभिन्न दलों के नेताओं ने इसे विपक्षी दल की साजिश बता अपना पल्ला झाड़ लिया। यहां तक की सुप्रीम कोर्ट ने भी हाथ खड़े कर लिए, सारे चैनल चिल्ला-चिल्ला कर राजनीतिक साजिश बता रहे थे। लेकिन इन सबके बीच दुख की बात तो यह थी कि किसी ने भी मजदूरों के असल दर्द को समझा ही नहीं।
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Category: News
Language: Hindi
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