Pratiman Magazine - July - December 2020
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In this issue
July - December 2020
महाभारत और सौंदर्यशास्त्र की चरम अनुभूति
यथार्थ का अतिक्रमण : प्राचीन और आधुनिक आख्यानों का अंतर
1 min
भविष्य के महानायक या 'एक असम्भव सम्भावना'?
गाँधी एक अर्थ में अनूठे हैं भारत के इतिहास में। भारत के विचारशील व्यक्ति ने कभी भी समाज, राजनीति और जीवन के संबंध में सीधी कोई रुचि नहीं ली है। भारत का महापुरुष सदा से पलायनवादी रहा है। उसने पीठ कर ली है समाज की तरफ़। उसने मोक्ष की खोज की है, समाधि की खोज की है, सत्य की खोज की है, लेकिन समाज और इस जीवन का भी कोई मूल्य है यह उसने कभी स्वीकार नहीं किया। गाँधी पहले हिम्मतवर आदमी थे जिन्होंने समाज की तरफ़ से मुँह नहीं मोड़ा। वह समाज के बीच खड़े रहे और जिंदगी के साथ और जिंदगी को उठाने की कोशिश उन्होंने की। यह पहला आदमी था जो जीवनविरोधी नहीं था, जिसका जीवन के प्रति स्वीकार का भाव था।
1 min
भाषा परिवार और सभ्यता का नस्ली सिद्धांत
अठारहवीं से लेकर उन्नीसवीं सदी के दौरान युरोप के बौद्धिक मानस पर धर्म, समाज, राष्ट्र और नस्ल की श्रेष्ठता को भाषाओं की श्रेष्ठता के आईने में देखने का रुझान हावी था।
1 min
भय की महामारी
यह देखना एक त्रासद अनुभव है कि जिस कोविड-19 के भय से मानव इतिहास के सबसे बड़े परिवर्तनों में से एक के घटित होने की आशंका है, वह भय बेहद अनुपातहीन और अतिरेकपूर्ण है। इस बात के भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं कि इन प्रतिबंधों से वायरस के संक्रमण या इससे होने वाली कथित मौतों को रोका जा सकता है। बेलारूस, निकारागुआ, तुर्की, स्वीडन, नार्वे, तंजानिया, स्वीडन, जापान आदि अनेक देशों ने डब्ल्यूएचओ की प्रत्यक्ष और परोक्ष सलाहों तथा मीडिया द्वारा बार-बार लानत-मलामत किये जाने के बावजूद या तो बिल्कुल लॉकडाउन नहीं किया, या फिर बहुत हल्के प्रतिबंध रखे। इनमें से किसी देश में कहीं अधिक मौतें नहीं हुई हैं। यह सही है कि बड़ी संख्या में लोगों के कोरोना-संक्रमण की पुष्टि हो रही है, लेकिन उससे बड़ा सच यह है कि यह वायरस उन संक्रमित लोगों में से अधिकांश लोगों को 'बीमार' तक कर पाने में सक्षम नहीं है।
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औपनिवेशिक भारत में हिंदी का विज्ञान-लेखन
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के खुलने और स्कूली शिक्षा के प्रसार के साथ ही भारतीय भाषाओं में विभिन्न विषयों की पाठ्य -पुस्तकों की ज़रूरत भी शिद्दत से महसूस की गयी।
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हिंसक आर्थिकी का प्रतिरोध
मशीन को उसके उचित स्थान पर बैठाना
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राजपूत और मुग़ल:संबंधों का आकलन
देशज इतिहासकारों की दृष्टि में
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यौन-हिंसा और भारतीय राज्य
विसंगतियों के आईने में
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मेरी अंग्रेज़ी की कहानी
अंग्रेज़ी जातिगत विशेषाधिकारों को मजबूत करती है, वर्गीय गतिशीलता के नियम तय करती है और व्यक्ति को एजेंसी से लैस करती है। क्या अंग्रेजों के सामाजिक इतिहास का कोई आत्मकथात्मक आयाम उसकी इस भूमिका की ख़बर दे सकता है? प्रस्तुत निबंध में इसी जोखिम से मुठभेड़ करने की कोशिश की गयी है।
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भारोपीय भाषा परिवार, हिंदी और उत्तर-औपनिवेशिकता
समीक्ष्य कृति हिंदी की जातीय संस्कृति और औपनिवेशिकता के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इसे उत्तर-आधुनिक, सबाल्टर्न और उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श के 'सैद्धांतिक निष्कर्षों' के प्रभाव में लिखा गया है।
1 min
कुछ कहें, कुछ करें
सामुदायिक मीडिया और सामाजिक परिवर्तन
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कश्मीर - सरकारी विमर्श बनाम गाँधी, आम्बेडकर और लोहिया उर्मिलेश
केंद्रीय सत्ता हासिल करने के बाद शुरुआत में कुछ समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर मामले में कुछ रणनीतिक-लचीलेपन का संकेत दिया था। इसके परिणामस्वरूप कश्मीर के अंदर और बाहर के कुछ राजनीतिक प्रेक्षक और टिप्पणीकार इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की कश्मीर-नीति में बड़ा बदलाव मानने लगे थे। पर ऐसे लोगों को निराश होने में देर नहीं लगी।
1 min
आर्थिक सुस्ती या पस्ती ?
वैकासिक मॉडल के फलितार्थों से फ़ौरी ग़लतियों तक
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आदिवासी जीवन और वनवासी कल्याण आश्रम
भारत की जनजातियाँ (आदिवासी) एक समरूप इकाई नहीं हैं। उनकी विविधता वनों पर निर्भरता, आधुनिकता से जुड़ाव, बाहरी संगठनों के प्रभाव, अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता इत्यादि कई आयामों में व्यक्त होती है।
1 min
Pratiman Magazine Description:
Publisher: Vani Prakashan
Category: Culture
Language: Hindi
Frequency: Half-yearly
पहला दौर मुख्यतः अंग्रेज़ी में और यदा-कदा अन्य भारतीय भाषाओं में लिखी गयी बेहतरीन रचनाओं को अनुवाद और सम्पादन के जरिये हिन्दी में लाने का था। इसमें मिली अपेक्षाकृत सफलता के बाद अंग्रेज़ी से अनुवाद और सम्पादन पर जोर कायम रखते हुए भारतीय भाषाओं में भी समाज-चिन्तन करने की दिशा में बढ़ने की जरूरत महसूस हो रही थी। लेकिन इस पहलकदमी के साथ व्याहारिक और ज्ञानमीमांसक धरातल पर एक रचनात्मक मुठभेड़ की पूर्व-शर्त जुड़ी हुई थी। सीएसडीएस के स्वर्ण जयंती वर्ष में समाज-विज्ञान और मानविकी की अर्धवार्षिकी पूर्व-समीक्षित पत्रिकाप्रतिमान समय समाज संस्कृति का प्रकाशन इस शर्त की आंशिक पूर्ति कर सकता है। पिछले कुछ वर्षों में अध्ययन पीठ में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में भी लेखन करने वाले विद्वानों की संख्या बढ़ी है। साथ ही भारतीय भाषा कार्यक्रम के इर्द-गिर्द कुछ युवा और सम्भावनापूर्ण अनुसंधानकर्त्ता भी जमा हुए हैं। प्रतिमान का मक़सद इस जमात की जरूरते पूरी करते हुए हिन्दी की विशाल मुफस्सिल दुनिया में फैले हुए अनगिनत शोधकत्ताओं तक पहुँचना है। समाज-चिन्तन की दुनिया में चलने वाली सैद्धान्तिक बहसों और समसामयिक राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विमर्श का केन्द्र बनने के अलावा यह मंच अन्य भारतीय भाषाओं की बौद्धिकता के साथ जुड़ने के हर मौके का लाभ उठाने की फ़िराक़ में भी रहेगा।
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