News Times Post Hindi Magazine - February 16 - 29, 2020
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In this issue
इस बार का केंद्रीय बजट विजन-एक्शन से भरपूर है’ - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दावे से असहमत न होते हुए भी कहा जा सकता है कि ये दोनों समानान्तर चलते नहीं दिख रहे। कहने का तात्पर्य कि विजन के समर्थन में गिनाने के लिए बहुत कुछ है। जैसे-2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी कार्यशील आबादी के हाथों को काम देने, रोजगारपरक विशेष प्रशिक्षण, वंजित छात्रों के लिए ऑनलाइन शिक्षा, गुणवत्तापरक इनोवेटिव शिक्षा के लिए नई शिक्षा नीति लाने की तैयारी और भारत को शिक्षा के क्षेत्र में विश्व के दिग्गजों की जमात में खड़ा करने व ‘स्टडी इन इण्डिया’ के लिए कर्ज और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जुटाने का उपक्रम आदि। लेकिन एक्शन की दृष्टि से देखें तो अभी बहुत कुछ अधूरा लगता है। विजन के इन एजेण्डों का मूल आधार शिक्षा होते हुए भी उसके लिए आवंटन प्रस्ताव को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। मात्र 4.67 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ शिक्षा के लिए आवंटन प्रस्ताव 99,300 करोड़ रुपये का ही है। 30 करोड़ की छात्र संख्या और 14 लाख स्कूल व 51 हजार कॉलेज के सापेक्ष यह अखरने वाला आंकड़ा है। ग्लोबल वैल्यू चेन बनाने की योजना के साथ तकनीकी क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इसके लिए नई स्मार्ट सिटी, इलेक्ट्रानिक विनिर्माण, डॉटा सेंटर पार्क, जैव प्रौद्योगिकी, क्वाण्टम टेक्नालाजी पार्क की स्थापना के प्रस्ताव जरूर हैं, लेकिन इसके लिए मेधाओं को तैयार करने के प्रति ठोस प्रस्ताव नहीं दिखता।
समाज को मूल्य आधारित सूचना जल्द पहुंचाएं
हमारा समाज रूढ़िवादी नहीं, परिवर्तन को स्वीकार करने वाला है। गतिशीलता हमारे संगठन की पहचान है इसलिए मौजूदा परिवेश में हमें काफी सक्रिय और सजग रहना होगा। साथ में संगठन और उसके संघर्ष के स्वरूप को समझ कर आगे बढ़ना होगा। भारत के जीवन प्रवाह को लेकर विरोधी विचार वालों के प्रचारतंत्र का मुकाबला करने के लिए प्रचार के नए साधनों जैसे, सोशल मीडिया, शार्ट फिल्म एवं फीचर फिल्म का इस्तेमाल करना चाहिए। इन साधनों के साथ जनजागरण के कार्यक्रमों को प्रमुखता देनी चाहिए। गतिशीलता ही हमारे संगठन की धरोहर और पहचान है। इस विश्वास को कायम रखने के लिए हमारा सदैव सक्रिय रहना आवश्यक है। साथ में अपने वैचारिक संगठन और उसके संघर्ष के स्वरूप को समझ कर अपनी रणनीति तय करनी चाहिए।
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संस्कृति व सर्जनात्मकता की जरुरत
पिछले दिनों देश में कई स्थानों पर आगजनी, तोड़फोड़ और सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते हुए देश और संविधान से प्रेम की भावना को प्रमाणित करने के नारे दिए जा रहे थे। ये हिंसा की ही विभिन्न अभिव्यक्तियां थीं। अपने पक्ष को सही साबित करने के लिए हिंसा की युक्ति का लक्ष्य सरकारी पक्ष को त्रस्त और भयभीत करना है। इस सोच में सरकार को सरकारी सम्पत्ति के बराबर मान लिया जाता है और उसे नष्ट करना अपना कर्तव्य । यह सब निश्चय ही सियासत के एक आत्मघाती मोड़ का ही संकेत है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।
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शिक्षकों की नजरें भी केंद्रीय बजट पर
निजी संस्थान के परिणामों और लोकप्रियता से मेल खाने के लिए सरकारी शिक्षण संस्थानों को प्राथमिक, माध्यमिक, कॉलेज, विश्वविद्यालय और तकनीकी शिक्षा के लिए अच्छे बजट आवंटन की आवश्यकता है। मई 2019 में जारी सरकार की नई शिक्षा नीति के मसौदे में वर्ष 2030 तक कुल सरकारी खर्च के 10 से 20 फीसदी तक शिक्षा पर खर्च बढ़ाने का सुझाव है, लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षा को आवंटित केंद्रीय बजट का हिस्सा 2014-15 में 4.14 प्रतिशत से गिरकर 2019 में 3.4 प्रतिशत हो गया। वर्तमान में शिक्षा खर्च की बड़ी धनराशि (80 फीसदी तक) राज्यों से आती है, लेकिन कई राज्यों में शिक्षा पर खर्च किए गए अनुपात को, विशेष रूप से 2015 के 14वें वित्त आयोग की अवधि के बाद, कम किया गया है। हालांकि 2019-20 में आवंटित धनराशि बढ़ी है। कई राज्य पहले से ही शिक्षा पर 15 और 20 फीसदी के बीच खर्च करते हैं। गरीब राज्यों में महत्वपूर्ण परिणामों के लिए निवेश की अधिक आवश्यकता है।
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शरणार्थियों की उम्मीदों का इम्तिहान
नागरिकता कानून में संशोधन के बाद देश नागरिकता की अहमियत समझने में लगा है। आजादी के बाद मजहब के नाम पर पहले दो धड़ों में, फिर अलग-अलग मुल्कों में बंटे भारत में 'आजादी' के अपने-अपने मायने हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अपने धर्म के मुताबिक जीने-रहने और पहनने-खाने की आजादी न मिलने और अमानवीय उत्पीड़न के चलते लाखों नागरिक बारी-बारी से जमीन-जायदाद, सगे-संबंधियों को छोड़कर भारत आए और यहीं रह गए। यहां जैसे-तैसे अपनी बस्तियां बसाईं, लेकिन अधिकृत तौर पर इन्हें बिना नागरिक बने कछ भी हासिल नहीं हो सकता। दिल्ली के मजनं का टीला में साल 2012 से आकर बसते गए तकरीबन 250 परिवार का जायजा लेते हुए हमने पाया कि केन्द्र के नागरिकता संशोधन कानून ने इन्हें संजीवनी दी है। अधिसूचना के बाद 10 जनवरी, 2020 से नागरिकता संशोधन कानून लागू हो गया है। 31 दिसंबर, 2014 से पहले आए गैरमस्लिम शरणार्थियों को इस कानन के लाग करने की प्रक्रिया को हरी झंडी मिलने के बाद कानूनी प्रक्रिया से नागरिकता मिल जाएगी। पाकिस्तानी शरणार्थी कैंपों में से एक दिल्ली के मजनूं का टीला में शरणार्थियों की जिंदगी को करीब से देखने वाले हमारे स्थानीय संपादक की रिपोर्ट।
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वसंत आता नहीं, लाना पड़ता है
वसंत का अपना जीवन दर्शन है- नित नया कलेवर धारण करना । वासंती हवाओं में तो आज भी वही सनातन मादकता-चंचलता है, परंतु उन पर रीझने वाले नहीं दिखते। अनंत व्योम में कहीं उल्लास की लालिमा नहीं, उमंग की कोई किरण नहीं। सर्वत्र वही भागमभाग, खींचतान और नीरसता। आनंद और आनंदोत्सव की परिकल्पना मन के एक कोने में निस्तेज पड़ी मानो अपने हाल पर सिसक रही, या यूं कहिए, कोस रही। वे दिन अब बीत चुके जब नैसर्गिक मनोरमता समस्त चराचर को स्पंदित और झंकृत करती थी। लेखनी काव्य सृजन के लिए उतावली हो उठती थी।
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योजनाओं में शिक्षा को मिले उचित स्थान
दुर्भाग्य से भारत में शिक्षा को वरीयता न देकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का बहुत कम अंश लगाया जाता रहा है। अब तक दो-तीन प्रतिशत तक ही यह सीमित रहा है, जबकि 6 प्रतिशत के लिए वर्षों से सैद्धांतिक सहमति बनी हुई है। इस बार भी बजट में इस पक्ष की अनदेखी की गई है। इस साल के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शिक्षा क्षेत्र में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 99,300 करोड़ रुपये की घोषणा की है। यह धनराशि बीते वित्त वर्ष 2019-20 से करीब पांच हजार करोड़ रुपये अधिक है। बीते वित्त वर्ष 2019-20 में शिक्षा क्षेत्र को 94,853.64 करोड़ रुपये दिए गए थे। भविष्य के भारत के निर्माण के लिए शिक्षा में निवेश पर गंभीरता से विचार जरूरी है। शिक्षित समाज ही अपनी सक्रिय और सक्षम भागीदारी से भारत के लोकतंत्र को सशक्त बना सकेगा। अतएव सरकार को बजट में शिक्षा के लिए अधिक आवंटन करना चाहिए।
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भारत की आर्थिक सेहत पर खास फर्क नहीं
विश्व में आहिस्ता-आहिस्ता दस्तक दे रही मंदी को हवा देने वाले अमेरिका-चीन ट्रेडवार से पीछा छुड़ाने के लिए दोनों देशों में सहमति की जमीन तैयार हो रही है। इस दिशा में पहले चरण का समझौता भी हो चुका है। फिर भी इसे निर्णायक बिंदु तक पहुंचने में अभी काफी वक्त लगेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले चरण के करार का चीन की ओर से पालन करने की समीक्षा का अधिकार अपने पास सुरक्षित रखा है। वह इसे राष्ट्रपति चुनाव तक खींचना चाहते हैं, ताकि इसे भुनाया जा सके। 15 जनवरी को सम्पन्न पहले चरण के करार के साथ ही सवाल उठाया जाने लगा है कि इसका भारत पर क्या असर होगा? इसकी वजह भी है क्योंकि अमेरिका और चीन दोनों भारत के बड़े व्यापारिक भागीदार हैं। वैसे इसमें दो राय नहीं कि अमेरिका-चीन की व्यापारिक सुलह दुनिया को प्रभावित करेगी। ऐसे में भारत अछूता कैसे रह सकता है?
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बदलते परिवेश में भारतीय कृषि
कृषि को लाभकारी बनाने के लिए मूलभूत नीतिगत बदलाव आवश्यक है, जिस पर आज विचार-विमर्श तक नहीं हो रहा है। कृषि अनुसंधान और विकास में तत्काल कम से कम जीडीपी का एक प्रतिशत हिस्सा खर्च करना चाहिए, जिसे 10-15 वर्षों में 2 प्रतिशत के ऊपर ले जाना चाहिए। भारत जैसे देश में जहां जनसंख्या का घनत्व विश्व के औसत से पांच-छह गुना ज्यादा है, वहां निवेश की देरी देश के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालने वाली है। कृषि में विकास के बावजूद असंतोष पहले से ज्यादा बढ़ रहा है। आज के परिवेश में यह जरूरी है कि वास्तविक सामाजिक व आर्थिक परिदृश्य को पहचाना जाए तथा समाज की विसंगतियों एवं विषमताओं का यथाशीघ्र निराकरण किया जाए, अन्यथा आने वाले वर्षों में बढ़ने वाली विषम परिस्थिति को संभालना अत्यंत दुष्कर होगा।
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बढ़ते शहरीकरण व जलवायु परिवर्तन पर चिंता
साहित्य का महाकुंभ पांच दिवसीय 'जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल-2020' का 13वां संस्करण 28 जनवरी को संपन्न हो गया। इस फेस्टिवल में 30 देशों के 500 से अधिक वक्ताओं और कलाकारों ने भागीदारी कर नई पीढ़ी को संस्कृति और साहित्य से रू-ब-रू होने का सुनहरा अवसर दिया। लिटरेचर फेस्टिवल में साहित्य की विभिन्न विधाओं से लेकर राजनीति, खेल और सिनेमा लेखन की नई तकनीक पर विचार-विमर्श हुआ।
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बजट से नुकसान नहीं, लेकिन फायदेमंद भी नहीं
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 के बजट के जरिए ऊर्जावान भारत, समृद्ध मानव पूंजी और एक स्वस्थ भारत के लिए समग्र विकास की नीव रखी है। बजट में लाए गए कर प्रस्ताव का भी कुछ हद तक स्वागत किया जा सकता है। व्यक्तिगत करदाताओं को पांच लाख की आय पर कर नहीं देने से खपत को बढ़ावा मिल सकता है। इसके बावजूद देश की विकास दर बढ़ाने की कोई ठोस योजना बजट में नहीं दिखाई देती। अगले पांच साल में देश की इकोनॉमी को 5 ट्रिलियन डॉलर करने का लक्ष्य आखिर कैसे पूरा होगा, इसका कोई रोडमैप सरकार ने नहीं दिया है। जबतक प्राइवेट इन्वेस्टर पैसा नहीं लगाएगा, तबतक यह लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल ही है। आम जनता और बेरोजगार युवाओं को भी बजट से निराशा ही हाथ लगी है।
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बजट - विश्वास का लेखा-जोखा !
बजट का समय आता है और समस्त देशवासियों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं । हर एक व्यक्ति बजट में अपने फायदे की चीज ढूंढता है और उसके मिलने ना मिलने के अनुसार बजट को अच्छा या बुरा बता देता है ।
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फिर लटकी दोषियों की फांसी
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया कांड के दोषियों के डेथ वारंट पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। तिहाड़ जेल प्रशासन की दोषियों को जल्द फांसी पर लटकाने के आग्रह वाली याचिका पर 7 फरवरी को सुनवाई करने के बाद पटियाला हाउस कोर्ट ने नया डेथ वारंट जारी करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि जब कानून दोषियों को जिंदा रहने की इजाजत देता है, तो उन्हें फांसी देना 'पाप' होगा। अदालत ने कहा कि केवल अटकलों और अनुमानों के आधार पर डेथ वारंट नहीं जारी किया जा सकता है। दरअसल, 5 फरवरी को ही दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्भया के दोषियों को अपने सभी उपलब्ध न्यायिक विकल्पों का इस्तेमाल करने के लिए 7 दिनों ( 11 फरवरी तक) की मोहलत दी थी। यही नहीं, हाईकोर्ट ने चारों दोषियों में जिनकी कोई याचिका लंबित नहीं है अथवा जिनके पास कोई न्यायिक विकल्प शेष नहीं है, उन्हें अलग-अलग फांसी देने का आदेश देने से भी इनकार कर दिया था।
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निर्भया के गुनहगारों को अंजाम तक पहुंचाने में जेल मैनुअल बड़ी बाधा - सजा के अमल पर सवालिया निशान
पवन, मुकेश, अक्षय और विनय शर्मा को फांसी पर लटकाने के लिए दूसरी बार डेथ वारंट जारी कर फांसी की तारीख 1 फरवरी मुकर्रर की गई है, लेकिन अभी दोषी पवन के पास क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका का विकल्प है। यही विकल्प अक्षय सिंह के पास भी है। विनय शर्मा के पास भी दया । याचिका का विकल्प है। अलबत्ता, मुकेश के पास अब कोई कानूनी विकल्प नहीं बचा है। यानी तीन दोषी पवन, अक्षय, विनय के पास अभी कुल पांच कानूनी विकल्प बचे हैं, जिनका वे तिहाड़ जेल की ओर से दिए गए नोटिस पीरियड के दौरान इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर तीनों दोषी एक-एक कर अपने शेष न्यायिक विकल्पों का इस्तेमाल करेंगे, तो निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाने में काफी देर हो सकती है। इसके मद्देनजर केन्द्र सरकार ने 22 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फांसी देने में बाधक नियमों को बदलने की मांग की है। कहा, मौजूदा नियमों से दोषियों को कानून से खेलने' का मौका मिल जाता है।
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दिल्ली फिर 'आप' की
भाजपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा और उसे 303 सीटें मिलीं । तब भाजपा ने प्रचारित किया था कि मोदी के सिवा देश में कोई विकल्प नहीं है। ' आप' ने इसी से सबक लेकर इस बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव में यह प्रचारित किया कि केजरीवाल का कोई विकल्प नहीं है । इसका उसे फायदा भी मिला । पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए केजरीवाल ने इस बार रणनीति बदली और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी पर निजी हमले करने की गलतियां नहीं दोहराईं । आप के लिए एक और बात लाभदायक साबित हुई कि कांग्रेस के मुकाबले से बाहर होने की वजह से चुनाव त्रिकोणीय नहीं बना ।
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दावों की हकीकत और भावी योजनाएं
यूपी सरकार के आगामी बजट 2020-2021 को लेकर इन दिनों चर्चाएं जोरों पर हैं। हालांकि इस दौरान बेहतर कानून व्यवस्था और विकास का दंभ भरने वाली योगी आदित्यनाथ सरकार के तीसरे 4,79,101 करोड़ के बजट के बाद हुए कार्यों की समीक्षाओं का दौर भी जारी है।
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डगमग आगे बढ़ रही उद्धव सरकार
विधानसभा चुनाव के एक माह बाद बमुश्किल महाराष्ट्र में सरकार गठित हुई, फिर सरकार बनने के एक महीने बाद मंत्रियों को उनके विभागों का बंटवारा किया जा सका। इसके पहले तो केवल 6 मंत्रियों के भरोसे विधानसभा का शीतसत्र चला। इसके बावजूद इस सरकार के घटक दलों के नेताओं के परस्पर विरोधाभासी बयान इस सरकार के कार्यकाल पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने स्वयं ही कहा कि गठबंधन सरकार के कार्यकाल के बारे में गारटी से कुछ नहीं कहा जा सकता। कुल मिलाकर महाराष्ट्र की उद्धव नीत महाविकास गठबंधन की सरकार डोलती-डगमगाती ही आगे बढ़ रही है। इसे लड़खड़ाती चलनेवाली तिपहिया सरकार कहा जा रहा है।
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ट्रंप के आगे दुश्वारियां और भी हैं...
करीब दो सप्ताह तक चले ट्रायल के बाद अमेरिकी सीनेट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सभी आरोपों में क्लीन चिट दे दी। सीनेट ने 5 फरवरी को ट्रंप को महाभियोग के दो आरोपों- सत्ता के दुरुपयोग और कांग्रेस (संसद) को बाधित करने आरोप से बरी कर दिया। रिपब्लिकन के बहुमत वाले सीनेट ने राष्ट्रपति ट्रंप को शक्ति के दुरुपयोग के आरोप में 52-48 के अंतर से तो कांग्रेस की कार्रवाई बाधित करने के आरोप में 53-47 वोट के अंतर से बरी कर दिया।
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टीम इण्डिया विजय रथ पर सवार
वे दिन बीत गए जब भारतीय क्रिकेट टीम को अपने घर का शेर कहा जाता था। टीम इण्डिया ने कीवी टीम को उसके घर में जिस प्रकार धोया, उसे विदेशी धरती पर अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। विराट कोहली की कप्तानी में मौजूदा टीम ने अपनी धरती पर ऑस्ट्रेलिया को वनडे सीरीज में 2-1 से हराने के बाद न्यूजीलैंड को पांच मैचों की टी-20 सीरीज में 5-0 से पराजित कर ऐसा मैदान मारा जिसकी कल्पना किसी को नहीं रही होगी। आज पूरा देश टीम इंडिया की वाह-वाह कर रहा है। पहले भारतीय टीम जब भी न्यूजीलैण्ड गई, जेहन में वहां की तेज पिचों का खौफ हमेशा रहा। इस बार कहानी बदल गई और टीम इंडिया का जीत का जुनून कीवी टीम पर भारी पड़ा । मानो टीम ने देशवाशियों को अहसास करा दिया कि अब हमने । जीतने की आदत डाल ली है, विश्व कप भी जीतकर आएंगे। इसका प्रमाण पिछले विश्व कप में न्यूजीलैंड के हाथों सेमी फाइनल में मिली हार को भुलाकर पिछले छह महीनों से विराट एंड कंपनी का जीत के रथ पर सवार होना है।
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जनोन्मुखी विकास का वादा
वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने विश्वास दिलाने का प्रयास किया है कि यह जनोन्मुखी, राष्ट्र को ठोस आर्थिक आधार दिलाने वाला और भारत को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने की ओर ले जाने वाला है। इस बजट का थीम है- 'आकांक्षी भारत, सबके लिए आर्थिक विकास करने वाला भारत और सबकी देखभाल करने वाला भारत' । इसमें लोकलुभावन घोषणाओं की परम्परा का भी निर्वाह किया गया है के लिए संसाधन जटाने के मकसद से कडे फैसले की मजबरी भी बताई गई है। करदाताओं को आश्वस्त करने के लिए वित्तमंत्री ने कालिदास के 'रघुवंश' की पंक्तियां भी सुनाईं- 'सूर्य जल की नन्हीं बूंदों से वाष्प लेता है। यही राजा भी करता है। बदले में वह प्रचुर मात्रा में लौटाता है। वह लोगों के कल्याण के लिए संग्रह करता है। लेकिन आयकर में राहत की मध्यवर्ग की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए वैकल्पिक आयकर प्रणाली का लॉलीपॉप थमा दिया, जिसमें छूट की पुरानी व्यवस्था समाप्त कर दी गई है। रोजगार सृजन के लिए उद्योगों के साथ ही कृषि को महत्व देने से दूरगामी परिणामों की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन शिक्षा-रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए बजट में अपेक्षित बढ़ोतरी न करना अखरने वाला भी है।
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खरीदारी करते वक्त उपभोक्ताओं को पक्की रसीद जरूर लेनी चाहिए - हितों का संरक्षण सतर्कता से ही संभव
आज बाजार की जो स्थिति है, उसमें उपभोक्ताओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें बाजार में चलने वाली व्यावसायिक प्रतियोगिताएं, भ्रमित करने वाले विज्ञापनों की भरमार, घटिया वस्तुओं की आपूर्ति, सेवा प्रदाता कंपनियों की ओर से छल-छद्म के साथ दी जाने वाली सेवाएं आदि शामिल हैं।
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एंटी भू-माफिया कानून, फिर भी कब्जे
एंटी भू-माफिया कानून लागू हुए और टास्क फोर्स बने पौने तीन साल हो गए लेकिन अवैध कब्जे खाली कराने के मामलों में कोई ठोस प्रगति होती नहीं दिख रही। लखनऊ की हर तहसील में ऐसे मामलों की भरमार है जिनमें इस कानून के तहत मुकदमे दर्ज हैं लेकिन कब्जे हटवाए नहीं गए। कहीं हटा भी दिए गए तो उन पर दोबारा कब्जा कर लिया गया है। यही कारण है कि अनेक सरकारी जमीनों पर रसूखदारों का कब्जा कायम है। ऐसे में कई जगह सरकारी जमीनों पर दूसरे गांव के लोग पैसे के बल पर कब्जा जमाए बैठे हैं। ऐसे में लोगों में धारणा बनती जा रही कि अधिकारी ही नहीं चाहते कि सरकारी या निजी जमीनों से अवैध कब्जे हटें। अगर तहसील दिवसों की बात की जाए तो उनमें अवैध कब्जे की शिकायतों का आज तक निस्तारण नहीं हो पाया है।
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अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराने के लिए संतों ने तेज किया प्रयास - ट्रस्ट के लिए केन्द्र ने मांगा ब्योरा
संत सम्मेलन में विहिप के केंद्रीय महामंत्री (संगठन) दिनेश चंद ने बताया था कि राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को अब तक कुल चार आवेदन भेजे गए हैं। पहले रामालय ट्रस्ट ने, फिर इस्कान मंदिर ने और फिर महावीर मंदिर (पटना) के किशोर कुणाल ने आवेदन किया था। जब इसकी जानकारी हुई तो श्रीराम जन्मभूमि न्यास की ओर से भी केन्द्र सरकार को आवेदन भेजा गया। यही नहीं, श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने आवेदन के साथ ही मंदिर आंदोलन और तराशे गए पत्थरों का ब्योरा तथा मंदिर का मॉडल भी भेजा था । इसके बाद केंद्र सरकार ने जन्मभूमि न्यास से कई अहम जानकारियां मांगी थीं, जिनमें मंदिर के स्वरूप, मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि न्यास को मिली धनराशि, अब तक हुए खर्च, शेष बची धनराशि आदि का विवरण शामिल है।
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अफवाहबाजों के खिलाफ बने शुचिता का तंत्र
सवाल यह है कि सांविधानिक पदों पर बैठे लोगों की बात पर यकीन करने की बजाय लोग सोशल मीडिया (जिसकी कोई जवाबदेही तय ही नहीं) और चंद नेताओं के बयान पर भरोसा क्यों कर बैठे हैं? वे क्यों नहीं समझते कि भ्रमित करने वाले राजनीतिक दल रोटियां सेंक रहे हैं? ऐसे में आवश्यक हो गया है कि आज की बदली परिस्थितियों में एक ऐसी संस्था स्थापित की जाए, जिसकी शुचिता-शुद्धता परखी हो और सुलभता आसान हो, ताकि अभी या आगे कभी ऐसी परिस्थितियां आएं तो उसके आधार पर सही सूचना प्रसारित कर जनता का विश्वास हासिल किया जा सके।
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अपराधों पर लगाम की चुनौती कायम
बेहतर कानून-व्यवस्था के नारे के साथ सत्ता में आई योगी आदित्यनाथ की सरकार 19 मार्च को तीन साल पूरे करने जा रही है। हालांकि यह सरकार भी कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर सबसे ज्यादा आलोचना की शिकार है। बीते दिनों सरकार ने प्रदेश की पुलिसिंग व्यवस्थाओं में बड़ा बदलाव करते हुए राजधानी लखनऊ और नोएडा में कमिश्नर प्रणाली लागू कर एडीजी सुजीत पांडेय को लखनऊ का पहला पुलिस कमिश्नर, आईजी नवीन आरोड़ा को ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (कानून- व्यवस्था), आईजी एन. चौधरी को ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (क्राइम एण्ड हेड क्वार्टर) बनाया । बतौर नोएडा पुलिस कमिश्नर कमान एडीजी आलोक सिंह को सौंपी गई। नए पुलिस कमिश्नर की प्राथमिकताओं में भी कानून-व्यवस्था में सुधार और अपराधों पर लगाम लगाना है और वे एक्शन में भी हैं। इसके बावजूद अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं दिखता।
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लोहिया - केजीएमयू ने बनाए कई कीर्तिमान
बीता साल राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के लिए काफी उपलब्धियों भरा रहा । लोहिया अस्पताल के विलय के बाद से ही डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में कई बदलाव हुए हैं । विलय के बाद से ही कई सुविधाओं में बढ़ोतरी हुई है तो कई नई सुविधाएं बढ़ी हैं । केजीएमयू ने भी साल 2019 में कई नए कीर्तिमान स्थापित किए । केजीएमयू के इतिहास में पहला लिवर प्रत्यारोपण मार्च 2019 में हुआ । घुटना प्रत्यारोपण को लेकर भी 2019 में केजीएमयू से बड़ी शुरुआत सामने आई । इसके तहत बताया गया कि अब घुटने का जितना हिस्सा खराब होगा , डॉक्टर सिर्फ उतना ही बदलेंगे ।
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रघुवर पर भारी पड़ी आदिवासियों की नाराजगी
रघुवर सरकार का बुरा वक्त वर्ष 2017 से ही तब शुरू हो गया था , जब सरकार जमीन अधिग्रहण बिल लेकर आई थी । विधानसभा से पास होने पर भी सरकार इसे लागू नहीं करा सकी । इसी के बाद से । आदिवासियों में रघुवर सरकार के खिलाफ नाराजगी के बीज पनपने लगे । वर्ष 2014 में भाजपा को जिताने के बाद गैर आदिवासी सीएम बनाने से भी आदिवासी समाज अपने को ठगा महसूस कर रहा था । भाजपा को जिन गैर आदिवासियों ने वोट डाला था , वह भी इस चुनाव में उससे किनारा कर चुका था । इसका कारण यह था कि बीते पांच वर्षों में भाजपा सरकार ने रोजगार के अवसर मुहैया नहीं कराए । भाजपा के बागी उम्मीदवार सरयू राय की उम्मीदवारी ने भी वोट में सेंध लगाई । स्थानीय मुद्दों से अलगाव भी भाजपा की हार का कारण बना ।
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दावों और वादों पर जमीनी अमल की चुनौती
प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने देश को एक विश्वास दिलवाया था कि उनका प्रयास देश में मिनिमम गवर्मेंट और मैक्सिमम गवर्नेस का होगा , लेकिन बेरोजगारों के संकट के समाधान के लिए बनाई गई दर्जन भर योजनाओं के परिणाम खुद ही चिन्ता का कारण बने हुए हैं । इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री ने अपने दावे के मुताबिक ढांचागत सुधार के लिए कई बड़े कदम उठाए , लेकिन जमीनी तौर इस भावना को उतारे जाने का सपना अभी कोसों दूर है ।
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सन्मार्ग से विमुख करता है भौतिकता का प्रदर्शन
उत्सवधर्मिता तो जीवन का आवश्यक अंग है , बस इसमें वैभव का अनावश्यक प्रदर्शन न हो । इस व्यर्थ के प्रदर्शन में कदाचार पैठ जमा लेता है और आगे चलकर ढेर सारे दुर्गुणों के साथ जीवन को आदर्शों से भटका देता है । भौतिकता का अतिरेक धर्म और सत्य के मार्ग से विरत करता है । ऐसी भौतिकता देश काल - समाज सबके हितों के प्रतिकूल होती है । इसका कारण है , भौतिकता में सत्य और धर्म न साध्य होते हैं न साधन , जबकि सत्य धरा को धारण करता है और धर्म सबकी रक्षा करता है ।
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हक के लिए उदासीनता त्यागें उपभोक्ता
हर व्यक्ति उपभोक्ता है । बावजूद इसके , कुछ ही लोग उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं , जिसका लाभ विभिन्न कंपनियां और दुकानदार उठाते हैं ।
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हिंसा की आग में किसने झोंका यूपी को ?
देशभर में नागरिकता संशोधन कानून का पुरजोर विरोध जारी है । इस दौरान यूपी के कई जिलों में भी जबरदस्त हिंसा और आगजनी हुई । सीएम योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में हुई हिंसा को लेकर कहा , ' लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है । संशोधित नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर कांग्रेस , सपा और वाम दलों ने पूरे देश को आग में झोंक दिया है । अराजक तत्वों से सख्ती से निपटा जाएगा । ' हालांकि हिंसा में बाहरी लोगों के शामिल होने की बात भी सामने आ रही है । राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं , ' इन शरारती तत्वों ने धारा 370 , ट्रिपल तलाक , अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जैसी घटनाओं को एक साथ जोड़ा और मुस्लिम युवाओं को गुमराह करने की कोशिश की । '
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Publisher: Newstimes Post International Pvt Ltd.
Category: News
Language: Hindi
Frequency: Fortnightly
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