Panchjanya Magazine - September 25, 2022Add to Favorites

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In this issue

दीन के दयाल का दर्शन पांच्जन्य की स्थापना का यह 75वा वर्ष है और 25 सितंबर इसके संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाधाए की जयंती

देश तोडने वाले कांग्रेसी क्या जानें जोड़ना किसे कहते हैं !

जो राजनीतिक नेता यही नहीं जानता कि किसी संगठन या राजनीतिक दल की विचारधारा और कार्य क्या हैं, उसे राजनीति में रहने का अधिकार क्यों होना चाहिए! 'युवराज' को अपने नाना के कामों तक की भी जानकारी नहीं

देश तोडने वाले कांग्रेसी क्या जानें जोड़ना किसे कहते हैं !

3 mins

भारत की चिति का दिव्य दर्शन

भारतीय संस्कृति एकात्मवादी है। सृष्टि की विभिन्न सत्ताओं तथा जीवन के विभिन्न अंगों के दृश्य-भेद स्वीकार करते हुए वह उनके अंतर में एकता की खोज कर उनमें समन्वय की स्थापना करती है। उसका दृष्टिकोण सांप्रदायिक अथवा वर्गवादी न होकर सर्वात्मक एवं सर्वोत्कर्षवादी है। एकात्मकता उसकी धुरी है। ऐसा विशद् चिंतन दिया था दीनदयाल जी ने।

भारत की चिति का दिव्य दर्शन

5 mins

रात को जब भी आंख खुलती है...

दीनदयाल जी के मामाजी बीमार थे और वे भुवाली (उत्तराखंड) के एक अस्पताल में भर्ती थे। दीनदयाल जी उनकी देखरेख के लिए उनके साथ थे। वहीं से उन्होंने अपने ममेरे भाई श्री बनवारीलाल शुक्ल को 10 मार्च, 1944 को एक पत्र लिखा था। जिससे समाज के प्रति उत्तरदायित्व का उनका बोध प्रदर्शित होता है।

रात को जब भी आंख खुलती है...

4 mins

हिंदुत्व और अंत्योदय-बदलाव के वाहक

हिंदुत्व में जिस तरह मानव में एकात्मता और समानता की बात कही गई है, उसमें बेमानी भेदों के लिए कोई जगह नहीं है। पंक्ति का आखिरी व्यक्ति पंक्ति में सबसे आगे खड़े व्यक्ति के समान महत्व रखता है

हिंदुत्व और अंत्योदय-बदलाव के वाहक

5 mins

सतत कृषि परियोजना से आई समृद्धि

किसानों को आत्महत्या से बचाने के लिए यवतमाल में दीनदयाल सेवा प्रतिष्ठान ने पहल की दुर्दशा के शिकार किसानों की काउंसलिंग से शुरू कर खेती को समृद्ध बनाने के लिए स्थानीय उपाय, कृषि सहयोगी उद्यमों को बढ़ावा और टिकाऊ खेती परियोजना पर अमल किया। आज यहां किसानों में समृद्धि दिखने लगी है

सतत कृषि परियोजना से आई समृद्धि

4 mins

'लंपी' का कहर, दूध पर असर

देश के 16 राज्यों में लंपी चर्म रोग का संक्रमण फैल गया है। इसके कारण हजारों गोवंश असमय काल का ग्रास बन चुके हैं। राजस्थान की स्थिति सबसे भयावह है। यहां सबसे अधिक गोवंश की मौत हुई है। इसी संकट की वजह से राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में दूध उत्पादन में 20-30 प्रतिशत, जबकि गुजरात में 0.25 प्रतिशत की कमी आई है

'लंपी' का कहर, दूध पर असर

6 mins

दास मानसिकता का परित्याग

स्वतंत्रता के अमृत वर्ष में भारत दासता के चिह्नों से स्वतंत्र होकर भारतीय प्रतीकों को अपनाने की दिशा में बढ़ रहा है। ये मात्र प्रतीक नहीं हैं अपितु एक मानसिकता के भी द्योतक हैं। नए प्रतीक बताते हैं कि भारत दासता की मानसिकता से मुक्ति की राह पर है

दास मानसिकता का परित्याग

5 mins

कन्वर्जन, उत्पीड़न से जूझती रहीं बच्चियां

तमिलनाडु में छात्रावासों के नाम पर गरीब बच्चियों का कन्वर्जन, उन्हें दी जा रहीं यातनाएं। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के हालिया निरीक्षण में चेन्नई स्थित एक विद्यालय के लड़कियों के छात्रावास में उत्पीड़न उजागर। आयोग ने राज्य सरकार को कार्रवाई को कहा, परंतु स्टालिन सरकार खामोश

कन्वर्जन, उत्पीड़न से जूझती रहीं बच्चियां

4 mins

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Panchjanya Magazine Description:

PublisherBharat Prakashan (Delhi) Limited

CategoryPolitics

LanguageHindi

FrequencyWeekly

स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद 14 जनवरी, 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक का अवतरण स्वाधीन भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदशोंर् एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों का स्मरण दिलाते रहने के संकल्प का उद्घोष ही था।

अटल जी के बाद 'पाञ्चजन्य' के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में सर्वश्री राजीवलोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरूप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरुण विजय, बल्देव भाई शर्मा और हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर 'पाञ्चजन्य' की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अविचल रहे।

किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है, परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा-स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से 'पाञ्चजन्य' का जन्म हुआ, वह नाम है पं. दीनदयाल उपाध्याय।

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