Panchjanya Magazine - September 11, 2022Add to Favorites

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In this issue

#राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020
सही राह की चाह
नई पीढ़ी को सिर्फ डिग्री नहीं,ज्ञान चाहिए...रुचि के अनुरूप करियर चाहिए.शिक्षक दिवस पर रोजगार विकल्पों, नई शिक्षा नीति और अनूठे शिक्षकों की कथाएं सममेटे पाञ्चजन्य का विशेष आयोजन

'स्व' शिक्षा की ओर बढ़ते कदम

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 अंग्रेजों द्वारा 1835 में लागू शिक्षा नीति को खत्म कर शिक्षा क्षेत्र को पूरी तरह भारत केंद्रित करने के उद्देश्य से बनी है। इस नीति में ऐसे बीज छुपे हुए हैं कि जिन बीजों के अंकुरित, पुष्पित-पल्लवित होने से भारत का ही नहीं, अपितु सारे विश्व का मार्गदर्शन करने वाली एक अत्यंत शास्त्रीय वैज्ञानिक शिक्षा व्यवस्था का निर्माण होगा। आवश्यकता है इस नीति के प्रभावी क्रियान्वयन की

'स्व' शिक्षा की ओर बढ़ते कदम

9 mins

कौशलयुक्त हो समग्र शिक्षा

प्राचीन काल में गुरुकुलों में 16 विषय और 64 कौशल आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते थे। इसलिए प्रत्येक ग्रामीण समुदाय किसी न किसी प्रकार के कौशल से संपन्न था। आज सामान्य शिक्षा सफल ज्ञान आधारित करियर के लिए उत्कृष्ट आधार होते हुए भी स्नातकों को कौशल से लैस करने में विफल है। लेकिन नई शिक्षा नीति में विषय- वस्तु सिखाने के बजाय सीखने की कला एवं बुनियादी कौशलों को प्राथमिकता दी गई है

कौशलयुक्त हो समग्र शिक्षा

7 mins

रुचि बनाएगी राह

12वीं के बाद विषय, कौशल का चयन महत्वपूर्ण होता है। शिखर तक जाने के लिए आवश्यक है कि विद्यार्थी अपनी अभिरुचि का ध्यान रखे। इस ज्ञान, कौशल को प्राप्त करने के लिए संसाधन भी छात्रवृत्तियों एवं शिक्षा ऋण के जरिए जुटाया जा सकता है

रुचि बनाएगी राह

4 mins

जैसा कार्य वैसा कौशल

भारत में नियोक्ताओं को आवश्यकता अनुरूप मानव संसाधन प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है वहीं रोजगार के इच्छुक लोगों के पास रोजगार नहीं है। इसका कारण अभ्यर्थियों में नियोक्ताओं की जरूरत के अनुसार कौशल का न होना है। इस कमी को पूरा करने के लिए युवाओं को विभिन्न प्रकार के कौशलों से युक्त करना अनिवार्य

जैसा कार्य वैसा कौशल

4 mins

नई रुचियां, नए रोजगार

शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। दो विषयों को समायोजित कर पाठ्यक्रम तैयार किए गए हैं, जो सफल होने के साथ रोजगार के नए अवसर भी सृजित कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति-2020 इस दिशा में बेहद सार्थक भूमिका निभाने वाली है। इसमें औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों ही तरह के पाठ्यक्रम रखे गए हैं

नई रुचियां, नए रोजगार

5 mins

शोध से ही निकलेगा समाधान

भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न क्षेत्रों में जितने अधिक शोध होंगे, उतना ही अच्छा होगा। बीमारी, जल संचयन, तकनीक, उद्योग आदि में नए-नए प्रयोगों की बहुत आवश्यकता है। इनसे ही समस्याओं का समाधान निकलेगा

शोध से ही निकलेगा समाधान

6 mins

चहुंमुखी विकास, बहुमुखी मेधा

शिक्षा संपूर्ण व्यक्तित्व के पुष्पन, पल्लवन एवं परिमार्जन का आधार है। मानव को सभ्य, सुसंस्कृत और योग्य बनाने के लिए यह अपरिहार्य है कि उसे समग्र शिक्षा प्रारंभ से ही दी जाए। समग्र शिक्षा से आशय है युवाओं में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, बौद्धिक, नैतिक, आत्मिक आदि सभी मानवीय क्षमताओं का विकास हो

चहुंमुखी विकास, बहुमुखी मेधा

7 mins

हिंदू संस्कृति के प्रबल पक्षधर

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली के राधाकृष्णन भारतीय दर्शन, हिंदू धर्म, हिंदुत्व और विश्व बंधुत्व के प्रबल पक्षघर थे। उन्होंने ईसाइयों के देश इंग्लैंड में जाकर पादरियों की सभा में भारतीय दर्शन की श्रेष्ठता को सिद्ध कर भारत का मान बढ़ाया

हिंदू संस्कृति के प्रबल पक्षधर

3 mins

सामान्य बच्चों से आगे बढ़े दिव्यांग बच्चे

बीकानेर के मूक-बधिर विद्यालय की अध्यापिका सुनीता गुलाटी ने मूक-बधिर बच्चों को नवाचार के जरिए इस तरह गढ़ा कि ये बच्चे राष्ट्रीय स्पर्धाओं में सामान्य बच्चों को पछाड़ने की स्थिति में पहुंच गए। उन्होंने ऑनलाइन वीडियो, अतिरिक्त शिक्षण मॉड्यूल, ऑडियो पुस्तक का निर्माण कर बच्चों में रुचि जगा और उनकी योग्यता को समाज के सामने रखा

सामान्य बच्चों से आगे बढ़े दिव्यांग बच्चे

2 mins

कांग्रेस पर असंतोष की छाया

कांग्रेस में असंतोष बढ़ रहा है। नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं। लेकिन न तो पार्टी बोलने को राजी है, न इसके ‘कर्णधार'। हाशिये पर धकेले गए नेताओं को राहुल गांधी और उनकी चाटुकार मंडली से शिकायत है, जबकि कुछ नेता चाहते ही नहीं कि पार्टी कभी 'परिवार' की छत्रछाया से बाहर निकले

कांग्रेस पर असंतोष की छाया

7 mins

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Panchjanya Magazine Description:

PublisherBharat Prakashan (Delhi) Limited

CategoryPolitics

LanguageHindi

FrequencyWeekly

स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद 14 जनवरी, 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक का अवतरण स्वाधीन भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदशोंर् एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों का स्मरण दिलाते रहने के संकल्प का उद्घोष ही था।

अटल जी के बाद 'पाञ्चजन्य' के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में सर्वश्री राजीवलोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरूप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरुण विजय, बल्देव भाई शर्मा और हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर 'पाञ्चजन्य' की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अविचल रहे।

किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है, परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा-स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से 'पाञ्चजन्य' का जन्म हुआ, वह नाम है पं. दीनदयाल उपाध्याय।

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