Hans Magazine - March 2020
Hans Magazine - March 2020
Go Unlimited with Magzter GOLD
Read Hans Magazine along with 8,500+ other magazines & newspapers with just one subscription View catalog
1 Month $9.99
1 Year$99.99
$8/month
Subscribe only to Hans Magazine
1 Year$11.88 $2.99
Buy this issue $0.99
In this issue
प्रेमचंद और राजेन्द्र यादव के पहले संपादकीयों का पुनर्प्रकाशन कर हम इस अंक से मुड़-मुड़ के देख स्तंभ की शुरुआत कर रहे हैं. हंस के पिटारे में पड़ी महत्त्वपूर्ण सामग्री को पाठकों के बीच फिर से लाने का नेक विचार रचना जी का था. प्रेमचंद का संपादकीय मार्च 1930 के हंस के प्रवेशांक में आया था.
प्रेमचंद के हंस से राजेन्द्र यादव का हंस अनेक मायनों में भिन्न होते हुए भी सामाजिक समानता अन्याय शोषण रूढ़ियों और आडंबरों के खिलाफ जिहाद शक्ति और सत्ता की अनीति तथा अत्याचारों के प्रतिरोध जैसे मुद्दों पर बिलकुल अलग नहीं है. प्रेमचंद का संपादकीय अपने समय की तमाम राजनीतिक सामाजिक आर्थिक चिंताओं को जिस गहराई से विश्लेषित करता है वह विलक्षण है. उसमें वायसराय और अंग्रेजों का जिक्र छोड़ दें और तब खदबदा रही राष्ट्रवादी चुनौतियों को किनारे कर दें तो राजनीतिक और आर्थिक भ्रष्टाचार सामाजिक जड़ता भोगवादी संस्कृति कुबेर-तंत्र और सार्वजानिक जीवन में बढ़ते छिछोरेपन जैसे विषयों पर इस संपादकीय की समसामयिकता में कोई कमी नहीं खोजी जा सकती. ऐसा लगता है यह सब कुछ आज के ही संदर्भ में लिखा गया है.
हम आशा करते हैं कि हंस का यह स्तम्भ पाठकों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा. आप सभी हमे अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें.
Hans Magazine Description:
Publisher: Akshar Prakashan Pvt Ltd
Category: News
Language: Hindi
Frequency: Monthly
हंस दिल्ली से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की कथा मासिक पत्रिका है जिसका सम्पादन राजेन्द्र यादव ने 1986 से 2013 तक किया।
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा स्थापित और सम्पादित हंस अपने समय की अत्यन्त महत्वपूर्ण पत्रिका रही है। महात्मा गांधी और कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी भी दो वर्ष तक हंस के सम्पादक मण्डल में शामिल रहे। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु के बाद हंस का सम्पादन उनके पुत्र कथाकार अमृतराय ने किया। अनेक वर्षों तक हंस का प्रकाशन बन्द रहा। बाद में मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि (31 जुलाई) को ही सन् 1986 से अक्षर प्रकाशन ने कथाकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में इस पत्रिका को एक कथा मासिक के रूप में फिर से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया | आने वाले वर्षों में यह सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली हिंदी साहित्यिक पत्रिका के रूप में उभरी और आज भी यह हिंदी साहित्य जगत में एक प्रतिष्ठित और विचारशील पत्रिका का स्थान बनाए हुए है.
सन 2013 में राजेन्द्र यादव की मृत्यु के बाद हंस का प्रकाशन और प्रबंध निदेशन उनकी पुत्री रचना यादव द्वारा किया जा रहा है और हिंदी के प्रख्यात कहानीकार संजय सहाय अब हंस के संपादक हैं.
- Cancel Anytime [ No Commitments ]
- Digital Only