प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 अप्रैल को मुंगेर की चुनावी रैली में कहा, "हमारी कोशिश संतुष्टीकरण है, उनकी (कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष) तुष्टीकरण की..." उन्होंने करीब 30 मिनट के भाषण में बेहतर कल के तमाम वादे और विपक्ष पर वार करने में कोई कोताही नहीं बरती. बिहार में लालू प्रसाद और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के दौर को "जंगल राज" से लेकर कांग्रेस की आम आदमी की संपत्ति पर 'बुरी नजर' (खूब चर्चा में आए 'विरासत कर' मामले) जैसे तमाम आरोपों से भाजपा के स्टार प्रचारक ने एनडीए का मोर्चा मजबूत करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी.
पिछले कई बार की तरह इस बार भी भगवा पार्टी का प्रचार अभियान काफी हद तक प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर आश्रित है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सभाएं और रोड शो कर रहे हैं, लेकिन उनके भाषण आम तौर पर कुछ माह पूर्व तक उनके साथ सत्ता साझा कर चुके राजद की आलोचना और मोदी की तरह ही लालू के जंगल राज की पुरानी यादों को जगाने तक सीमित होते हैं. हालांकि, तब से गांधी सेतु के नीचे गंगा में बहुत पानी बह चुका है और ऐसे नैरेटिव से मतदाताओं को अपनी ओर खींचना आसान नहीं है.
दरअसल, अब चुनावी नैरेटिव पर लालू प्रसाद के बेटे तथा राजद अध्यक्ष तेजस्वी यादव की पकड़ ज्यादा पुख्ता दिखती हैं. 34 वर्षीय राजद नेता 29 अप्रैल तक करीब 75 सभाएं कर चुके थे. वे नौकरी-रोजगार और नौजवानों को मजबूती देने तथा रोजी-रोटी के मुद्दों को उठा रहे हैं, जो लोगों को ज्यादा भा रहे हैं.
हफ्ते-दर-हफ्ते सियासी पारा चढ़ता जा रहा है (बिहार में आखिरी चरण तक वोट पड़ेंगे) और तेजस्वी ने प्रधानमंत्री पर हमले भी तेज कर दिए हैं. वे उन्हें "झूठ के मैन्युफैक्चरर और थोक डीलर" करार दे रहे हैं. युवा राजद नेता की पकड़ मौके पर मजबूत होती दिखती है, मगर एक दरार पाटने की चुनौती भी मुंह बाए खड़ी है: कुछ तबकों में राजद के मुख्य जनाधार यादवों को लेकर दुविधा कैसी तोड़ी जाए.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin May 15, 2024 sayısından alınmıştır.
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