गुरुघंटालों की करतूतें
Sarita|February Second 2024
चिन्मयानंदों को उन के कुकृत्य की सजा इसलिए नहीं मिलती क्योंकि अपने अंधभक्तों की बेशुमार संख्या दिखा कर वे सरकार को दबाव में रखते हैं. वोट खिसकाने की धमकी दे कर वे अपने पक्ष में फैसले करवाने के लिए सरकार को बाध्य करते हैं.
नसीम अंसारी
गुरुघंटालों की करतूतें

कानून की पढ़ाई करने वाली छात्रा से बलात्कार के आरोपी संत और पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद को एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषमुक्त कर बाइज्जत बरी कर दिया. मामले के विवेचना अधिकारी कोर्ट के सामने पुख्ता साक्ष्य पेश नहीं कर सके, लिहाजा साक्ष्यों के अभाव का फायदा बलात्कार के आरोपी को मिला. पुख्ता साक्ष्य मिलता भी कैसे? सरकार स्वामीजी की, स्वामीजी सरकार के, पुलिस सरकार की और पीड़िता का मुंह तो डर, दबाव और पैसे से पहले ही बंद करवाया जा चुका है. मगर कोर्ट ने भी कुछ क्यों नहीं किया, यह सवाल है?

इस देश में साधु, महात्मा और स्वामी कहलाने वाले बड़ेबड़े लोग बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य कृत्यों के कारण जेल गए. कुछ छूट गए, कुछ छूटने की पूरी उम्मीद में हैं. छूट वे इसलिए जाते हैं क्योंकि सत्ता, नेता, पुलिस, अदालत और जनता सब उन की जेब में हैं.

इन चिन्मायनंद सरीखों को शर्म नहीं आती. अपनी गलीच करतूतों पर धर्म का परदा डाल कर ये रोज जनता को प्रवचन देने बैठ जाते हैं और जनता निरी मूर्ख, इन के कुकृत्यों के वीडियो देख कर, इन के कुकर्मों को समाचारपत्रों और चैनलों पर देखपढ़ कर भी इन की भक्त बनी रहती है. ऐसे अनपढ़, मूर्ख और धर्म के आगे अंधे व बहरे हो चुके लोगों को अगर ये साधुसंन्यासी आराम से अपना शिकार बनाते हैं, उन की बहूबेटियों की इज्जत लूटते हैं और फिर कानून के शिकंजे से साफसुथरे बाहर निकल आते हैं तो दोष किस का है?

निसंदेह दोषी इस देश की जनता ही है. अंधभक्त लोगों को ये साधुसंत ही नहीं नोंच रहे, यही उन की बेटियों से रेप नहीं कर रहे बल्कि आज तो धर्म के नाम पर सत्ता भी यही सब कर रही है.

चिन्मयानंदों को उन के किसी कुकृत्य की सजा इसलिए नहीं मिलती क्योंकि अपने अंधभक्तों की बेशुमार संख्या दिखा कर वे सरकार को हमेशा अपने दबाव में रखते हैं. वोट खिसकाने की धमकी में लिए रहते हैं. इसलिए चिन्मयानंदों के कुकृत्यों के केस कमजोर करने और उन की रिहाई के लिए सरकार पुलिस व अदालत पर दबाव बनाती है.

This story is from the February Second 2024 edition of Sarita.

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