महज 21 वर्ष की उम्र में श्याम बेनेगल की फिल्म 'सरदारी बेगम' में अभिनय कर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार पा जाने वाली अभिनेत्री राजेश्वरी सचदेव को फिल्म हो या टीवी सीरियल हर जगह श्याम बेनेगल व बासु चटर्जी जैसे उत्कृष्ट निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर मिला. राजेश्वरी सचदेव ने दूसरे निर्देशकों के साथ भी काम किया. मसलन, 'सूरज का सातवां घोड़ा' करने के बाद राजेश्वरी सचदेव ने बर्नार्डो बर्टोलुसी के निर्देशन में इंग्लिश भाषा की फिल्म 'लिटिल बुद्धा' की. फिर बासु चटर्जी के निर्देशन में 'त्रिया चरित्र' की.
मेजर कौल के निर्देशन में 'परमवीर चक्र', प्रवीण निश्चल की 'इंग्लिश बाबू देसी मेम', परेश कामदार की 'टुन्नू की टीना' आदि में अभिनय कर राजेश्वरी सचदेव ने खुद को किसी बंदिश में नहीं बांधा. वे सिर्फ अच्छे किरदार निभाने पर ही जोर देती आई हैं. तभी तो जब मनीश तिवारी ने उन्हें फिल्म 'चिड़ियाखाना' में सिंगल मदर का किरदार सौंपा तो उन्होंने उसे भी निभाया, जो कि 2 जून को प्रदर्शित हुई.
हाल ही में उन से हुई एक बातचीत में जब पूछा कि आप ने क्या बहुत छोटी उम्र से ही अभिनय करना शुरू कर दिया था तो उन्होंने कहा, “सच तो यही है क्योंकि मेरा जन्म ही कला जगत से जुड़े परिवार में हुआ था. मेरे पिता अपनी नौकरी करने के साथ ही थिएटर व फुटबॉल के खेल से जुड़े हुए थे. मेरी मां ने मुझे 5 साल की उम्र से ही भरतनाट्यम सिखवाना शुरू कर दिया था. मेरी नृत्य की शिक्षा राज राजेश्वरी डांस स्कूल में चल रही थी पर मैं दोतीन मैं माह में ही बोर हो गई क्योंकि इतने वक्त में वे हमें सिर्फ बैठना ही सिखा रही थीं. मतलब, नींव मजबूत कर रही थीं.
“मैं ने डांस क्लास में न जाने के लिए। बहाने शुरू किए पर मेरी मां के सामने कोई बहाना काम न आता. मैं आज भी अपनी मां का शुक्रिया अदा करती हूं कि उन्होंने उस वक्त मुझे जबरन डांस क्लास में भेजा. फिर 14 साल लगातार डांस किया. 10वीं कक्षा में मैं ने पिताजी से कहा कि अब मेहनत ज्यादा करनी है तो डांस क्लास नहीं जाती. पिताजी ने कहा, 'तुम 24 घंटे नहीं पढ़ सकतीं. एक घंटा डांस सीख कर अपना माइंड फ्रैश कर के आओ.'
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50 प्लस की एंड यंग हौट ब्यूटीज
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खुशी हमारी मुट्ठी में
जिंदगी में हमेशा खुश रहने के साथ स्वस्थ, सक्रिय व संतुष्ट जीवन बिताना चाहते हैं, तो यह जानकारी आप के लिए ही है.
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करीबी रिश्ते में खटास लाए बीमारियां
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कम उम्र की लड़कियों के घर से भागने की वजहें, थोड़ी ही सही, बदल रही हैं. माना यह जाता है कि लड़कियां आमतौर पर फिल्मों में हीरोइन बनने के लिए भागती हैं और नासमझी के चलते कोई भी उन्हें इस बाबत बहका लेता है.
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दहेज हत्या मामले में अकसर लड़के और उस के घर वालों को हिरासत में ले लिया जाता है. मगर क्या सही में दहेज से जुड़े मामलों में हमेशा सारा दोष लड़के या उस के घर वालों का ही होता है? कई बार इस के लिए दोषी खुद लड़की, उस के घर वाले और हमारा समाज भी होता है.
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एकादशी के कर्मकांड अधिकतर संपन्न व खातापीता तबका करवाते दिखाई देता है. वे बड़े चाव से इस की ऊलजलूल कथाएं सुनते हैं, लेकिन शायद ही वे इस पर कोई सार्थक विमर्श कर पाते हैं या सवाल खड़े कर पाते हैं. अगर वे चिंतनशील होते तो जान जाते कि कैसे एकादशी कर्मकांड पंडों के लूट का साधन के सिवा और कुछ नहीं.
गुड गवर्नेस को मुंह चिढ़ाता पेपर लीक
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