अपारदर्शी चुनावी बॉन्ड
Outlook Hindi|March 18, 2024
चुनावों के माध्यम से एक राष्ट्र के जीवन की पड़ताल करने वाली एस. वाइ. कुरैशी की लिखी किताब इंडियाज एक्सपेरिमेंट विद डेमोक्रेसी का एक अंश, जिसमें बताया गया है कि चुनावी बॉन्ड क्यों पारदर्शी नहीं हैं
एस. वाइ. कुरैशी
अपारदर्शी चुनावी बॉन्ड

वित्त मंत्रालय ने चुनावी बॉन्ड की त्रैमासिक बिक्री की खिड़की खोल दी है। इसे 1 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021 के बीच खरीदा जा सकेगा। पिछले ही हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मंत्रालय की यह अधिसूचना आई है। शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड पर सुनवाई के दौरान हालांकि नई चिंता जाहिर की थी कि राजनीतिक दलों को मिले चंदे का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों या हिंसा वगैरह में किए जाने की आशंका है। इस संदर्भ में उसने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या इस चंदे के इस्तेमाल को नियंत्रित करने का कोई उपाय उसके पास है। मुझे उम्मीद थी कि अदालत इसी के साथ एक और अहम सवाल उठाती, एक और आशंका जहां इस चंदे के संदिग्ध इस्तेमाल की गुंजाइश मौजूद है - चुनावों के बाद जनादेश को पलटने के लिए विधायकों की खरीद में इसका प्रयोग।

सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिका पर हुई, जिसने चुनावी बॉन्ड की ताजा बिक्री पर रोक लगाने की मांग की थी। एसोसिएशन की चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली मूल याचिका अदालत के समक्ष अब भी लंबित है।

यह मुद्दा फरवरी 2017 से ही ज्वलंत बना हुआ है, जब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में दो बड़े बयान दिए थे: एक, राजनैतिक फंडिंग में पारदर्शिता के बगैर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव मुमकिन नहीं हैं; और दूसरा, सत्तर साल से चिंता जताने के बावजूद हम उस पारदर्शिता को हासिल कर पाने में नाकाम रहे हैं। इन भव्य बयानों के बाद कोई भी उम्मीद कर सकता था कि मुद्दे का हल निकलेगा, हालांकि अपने कहे से ठीक उलट घोषणा उन्होंने कर दी।

इस तरह चुनावी बॉन्ड की पैदाइश हुई और पारदर्शिता एक बार फिर से उसका शिकार हुई। उसके बाद से 20,000 रुपये से ज्यादा चुनावी चंदे की हर राशि की सूचना चुनाव आयोग को दी गई है। फर्क इतना आया है कि अब 20 करोड़ हो या 200 करोड़ रुपये, कितनी भी रकम बेनामी दान दी जा सकती है। इसके पीछे वजह यह गिनाई गई कि चंदा देने वाला गोपनीयता की चाहत रखता है।

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