एक ठिठुरती ठंडी शाम में एक लड़की छोटा शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश सचिवालय के गेट नंबर एक पर अकेले खड़ी थी। लड़की पास के ही किसी स्थानीय अनाथालय में रहती थी। वह मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से मिलना चाहती थी, जो दिन भर की व्यस्त बैठकों के बाद अपने काम निपटा रहे थे। लड़की उत्सुक थी कि मुख्यमंत्री उसकी शिकायतें सुनेंगे और उसका हल करेंगे। तभी अचानक, मनाली से पहली बार कांग्रेस विधायक बने भुवनेश्वर गौड़ की नजर उस लड़की पर पड़ी और उन्होंने पूछा कि वह इतनी परेशान क्यों नजर आ रही है। भरी हुई आंखों से उस लड़की ने आपबीती सुनाई, ‘सर मैं बेसहारा हूं। मुझे बचपन से ही एक स्थानीय अनाथालय में रखा गया है। मैंने अपनी पढ़ाई कर ली है। अब मुझे बताया गया है कि मैं आश्रय गृह में नहीं रह सकती क्योंकि अनाथालय या देखभाल गृह में रहने के लिए 18 वर्ष की निश्चित आयु सीमा है। मेरे पास आगे पढ़ने के लिए कोई घर और साधन भी नहीं है। मुझे मुख्यमंत्री से मदद की जरूरत है।’’ गौड़ ने उसकी मुलाकात मुख्यमंत्री से करवाई।
मुख्यमंत्री सुक्खू ने लड़की की बात सुनकर अधिकारियों को बुलाया और आदेश दिया कि आश्रय-गृहों में रहने वाले किसी भी बच्चे को 27 साल की उम्र तक या जब तक वह रोजगार नहीं प्राप्त कर लेता या व्यवसाय स्थापित नहीं कर लेता, उसे छोड़ने के लिए नहीं कहा जाएगा। गौरतलब है कि यह हिमाचल प्रदेश में एक नई पहल की शुरुआत थी, जब सरकारी आश्रय-घरों और राज्य द्वारा संचालित अनाथालय में रहने वाले 6000 बच्चों के प्रति एक मानवीय सरकारी दृष्टिकोण सामने आया।
Diese Geschichte stammt aus der November 13, 2023-Ausgabe von Outlook Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der November 13, 2023-Ausgabe von Outlook Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
आजाद तवायफ तराना
तवायफों पर आई नई वेबसीरीज हीरामंडी ने फिर कोठेवालियों और देवदासियों के साथ हिंदुस्तानी सिनेमा के रिश्तों की याद दिलाई
अगला द्रोण कौन
टीम इंडिया में अर्जुन तो बहुत, उन्हीं को संवारने के लिए एक ऐसे कोच की तलाश, जो टीम को तकनीकी-मानसिक मजबूती दे सके
ममता दीदी की दुखती रग
इस चुनाव में अपनी पार्टी के नेताओं का भ्रष्टाचार ही ममता की सबसे बड़ी चुनौती
हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
तीसरी बारी क्यों
विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार और संविधान बदलने तथा आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर देश की जनता को गुमराह नहीं कर सकता
क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा