अक्टूबर की एक शांत-सुरम्य सुबह लहू-लुहान हो गई। क्फार अजा, बेरी, नाहल ओज और मैगेन की इजरायली बस्तियों के आसमान में आग की लपटें उठने लगीं। छीजती गाजा पट्टी की सीमा से लगी अमूमन ये शांत बस्तियां हमास उग्रवादियों के भयंकर हमलों और खौफनाक नजारे में घिर गईं।
इससे पहले कि सूरज रात को भगाए, इन लड़ाकों ने दक्षिणी इसरायल में घुसने के लिए हरसंभव साधन का इस्तेमाल किया। आम मोटरबाइकों से लेकर असामान्य पैराग्लाइडर तक। उन्होंने शांत रिहाइशी इलाकों में घुसपैठ की और रास्ते भर तबाही मचाते हुए उस खूनी टकराव की गूंज ताजा कर दी, जिसे खत्म माना जा रहा था। उसके बाद के दिनों में राहतकर्मियों ने मलबे से इस अप्रत्याशित हमले में जान-माल की क्षति का पता लगाया, जिसमें 279 सैनिकों सहित लगभग 1,300 लोग निकाले गए।
किबुत्ज बेरी के मलबे में अमन की खांटी पैरोकार 74 वर्षीय विवियन सिल्वर की कहानी भी त्रासदी में दफन हो गई। उनका घर खड़ा था या कहें, दीवारें खड़ी थीं टूटी हुईं- इजरायल और फलस्तीन के बीच पुल बनाने के उनके आजीवन मिशन की मानिंद। शांति स्थापित करने के प्रयासों के लिए चर्चित विवियन लापता हैं। उनकी गुमशुदगी से अमन कायम करने के गलियारों में मानो गहरा शून्य उभर आया है। फलस्तीन के मुद्दों को कवर करने पहुंचने वाले बाहरी पत्रकारों के लिए, खासकर गाजा में कुछ भी जानने-समझने का वे पहला पड़ाव हुआ करती थीं।
यह अंधियारा उस डरावनी वास्तविकता पर साया था, जिसका सामना नोवा संगीत समारोह में आने वाले आगंतुकों को करना पड़ा। जश्न का यह आयोजन खौफनाक मंजर में तब्दील हो गया। टकराव में 260 लोगों की सांस की डोर टूट गई, कुछ को बंधक बना लिया गया और अब वे उम्मीद के उस नाजुक धागे के सहारे बंधे रह गए हैं, जो उन्हें उनके प्रियजनों से जोड़ती है। ऐसी ही एक कहानी 22 वर्षीय ओमर वेनकर्ट की थी, जिसके परिवार को भेजे गए कष्टदायक संदेश खुशी और निराशा की गर्त के बीच झूलते रहे।
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
आजाद तवायफ तराना
तवायफों पर आई नई वेबसीरीज हीरामंडी ने फिर कोठेवालियों और देवदासियों के साथ हिंदुस्तानी सिनेमा के रिश्तों की याद दिलाई
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ममता दीदी की दुखती रग
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हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
तीसरी बारी क्यों
विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार और संविधान बदलने तथा आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर देश की जनता को गुमराह नहीं कर सकता
क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा