गए मंगलवार यानी 16 अप्रैल को दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने अपनी संकल्प सभाओं की शुरुआत की. ठिकाना था राष्ट्रीय राजधानी के आंबेडकर नगर की जोशी कॉलोनी. पास की ही बस्ती मदनगीर में फोटो कॉपी की दुकान चलाने वाले 37 वर्षीय सुभाष कुमार भी उसमें शामिल होने आए थे. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के दिनों से ही वे अरविंद केजरीवाल से जुड़े हैं. उन्हीं के शब्दों में, “कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद जब मैंने केजरीवाल को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते सुना, तभी से उनका प्रशंसक हो गया. आम आदमी पार्टी बनने पर उसके कार्यक्रमों में भी जाने लगा. पूरा समय तो पार्टी को नहीं दे पाया लेकिन रोजी-रोटी चलाते हुए साथ जुड़ा रहा. जिस केजरीवाल ने लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई है, उसे भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में डालने से सबको समझ आ रहा है कि यह भाजपा की साजिश है." इसी तरह की बातें सभा में मौजूद और भी कई लोगों ने कहीं.
तो क्या केजरीवाल और आप के पीछे के कार्यकर्ताओं की फौज अब भी जस की तस बरकरार है? थोड़ा ठहरें. सरकारी सेवा से रिटायर एक बुजुर्ग देर तक इधर-उधर की बात करने के बाद खुलते हैं, "आप की सभाओं में अब अपेक्षाकृत कम लोग आ रहे हैं. कुछ दिन पहले केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में जंतर मंतर पर पार्टी के धरने में कितने कम लोग आए थे. एक दौर था कि जंतर मंतर रोड एक छोर से दूसरे छोर तक पैक रहता था." ऐसा क्यों? वे जवाब देते हैं, "आप के नेताओं पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों में अंत में भले कोई सचाई न निकले पर बहुत से कार्यकर्ताओं समर्थकों के मन में संदेह पैदा हो गया है. यही कि जिनके पीछे वे दिन रात लगे हुए थे, वे भी औरों जैसे ही निकले!" इस बुजुर्ग का दावा था कि कई लोग व्यक्तिगत उम्मीद में आप से जुड़े थे. ऐसे लोग भी निराशा में साथ छोड़ रहे हैं.
आंबेडकर नगर की इस सभा में और 16 अप्रैल को ही दिल्ली विश्वविद्यालय में हुए विरोध प्रदर्शन में आप कार्यकर्ताओं से बात करने पर एक बात गौर करने लायक मिली. यही कि विरोध-प्रदर्शनों में आने वाले लोगों की संख्या कम हुई है. हालांकि, पार्टी के नेता इससे इनकार करते हैं. उनका तर्क है कि वर्किंग डे और गर्मी की वजह से कभी-कभी किसी कार्यक्रम में लोग थोड़ी कम संख्या में आते हैं और ऐसा हर पार्टी के साथ होता है.
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