अपने दरवाजे पर 11 साल की सायरा खातून झाड़ू लगाती हुई मिलती है. बिहार के गोपालगंज जिले के इंदरपट्टी गांव की सायरा संकोची, मगर प्यारी सी बच्ची है. सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है कि उसके माता-पिता दोनों गुजर चुके हैं. इनमें से एक की मौत कोरोना की वजह से हुई है. सायरा कहती है, "अब्बू का इंतकाल कोरोना के टाइम हो गया. अम्मी तो बहुत पहले गुजर गई थीं. मुझे उनका चेहरा तक याद नहीं. लोग कहते हैं कि मैं तब सिर्फ दो साल की थी." अपने परिवार के बारे में वह बताती है, "अब हम चार भाई-बहन बचे हैं. सबसे बड़े भाई फैज अक्सर घर से बाहर रहते हैं. उसके बाद बहन रुखसार है, जो पटना में रहकर पढ़ाई करती है. यहां इस घर में अमूमन मैं और मेरे बड़े भाई कैफ ही रहते हैं, जो दसवीं में पढ़ते हैं. दोनों मिलकर खाना पकाते हैं, घर का सारा काम करते हैं और पढ़ाई भी करते हैं." सायरा का बड़ा भाई फैज अहमद 19 साल का, बहन रुखसार खातून 17 साल की तो भाई कैफ अली 14 साल का है.
फैज बताते हैं कि उनके तीन भाई-बहनों को बिहार सरकार की बाल सहायता योजना के तहत हर महीने 1,500 रुपए मिलने थे, जो जनवरी, 2023 से नहीं मिले हैं. फैज की उम्र 18 साल से अधिक हो गई है, इसलिए उसे यह लाभ मिलना बंद हो गया है. फैज ने कहा, "हमारे घर का खर्चा किसी तरह चल रहा है, कभी चाचा लोग मदद कर देते हैं तो कभी कहीं और से कुछ हो जाता है." जाहिर है, अपने मां-बाप को गंवा चुके इन बच्चों से सरकार ने मुंह मोड़ लिया है.
दरअसल, अपने माता-पिता दोनों को खो चुके अनाथ बच्चों, जिनके माता या पिता की मृत्यु कोरोना की वजह से हुई हो, को 18 साल की उम्र तक आर्थिक मदद देने के लिए बिहार सरकार ने बाल सहायता योजना शुरू की थी. ऐसे हर बच्चे को प्रति माह 1,500 रुपए मिलने थे. मगर समाज कल्याण विभाग के अंदरूनी सूत्रों ने इंडिया टुडे को जानकारी दी कि जनवरी, 2023 से ऐसे बच्चों को पैसे नहीं मिले हैं. इंडिया टुडे के पास राज्य के ऐसे कुल 82 बच्चों की सूची है, जिन्हें कोरोना ने अनाथ की श्रेणी में ला खड़ा किया था.
इंदरपट्टी से 30-35 किमी दूर गोपालगंज के ही दहीभाता गांव के पांच भाई-बहनों और वहां से 60-65 किमी दूर सीवान जिले के नौकाटोला गांव के तीन भाई बहनों की कहानी भी सायरा से मिलती-जुलती है.
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