दो साल पहले हाइटेंशन लाइन से टकराकर मारी गई एक मादा गोडावण की याद में इसे में बनाया गया है. वन्यजीवों को बचाने में जुटे सांवता रासला गांव के पर्यावरणविद् सुमेर सिंह भाटी कहते हैं, "हमने यह स्मारक वन विभाग और सरकार की आंखें खोलने के लिए बनाया था. पर आज भी जिस तरह यहां गोडावण की मौत हो रही है, उससे लगता है कि सरकार कोई सबक नहीं लेने वाली."
पिछले साल 20 दिसंबर को जैसलमेर जिले के पाकिस्तान सीमा से सटे म्याजलार गांव और 19 मार्च, 2023 को पोकरण के खेतोलाई गांव के पास दो गोडावण मृत पाए गए. म्याजलार गांव में गोडावण आवारा कुत्तों का शिकार बन गया और खेतोलाई के पास गोडावण हाइटेंशन तारों से टकराकर मौत का शिकार बना था. इस क्षेत्र में पिछले कुछ अरसे में बिजली की हाइटेंशन लाइनों से टकराकर इस प्रजाति के आठ परिंदों की मौत हो चुकी है.
गोडावण थार के रेगिस्तान में पाया जाने वाला एक बड़ा देसी पक्षी है और गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल है. 2018 की गणना के अनुसार, देश में इस समय 150 से में भी कम गोडावण रह गए हैं. 20-22 साल पहले तक राजस्थान में इनकी संख्या 600 से भी ज्यादा थी. गोडावण को बचाने के लिए 1981-82 में वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत जैसलमेर और बाड़मेर जिलों के 3,162 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में डेजर्ट नेशनल पार्क बनाया गया था. क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे बड़ा अभयारण्य है. राजस्थान में सर्वाधिक संख्या में गोडावण पक्षी इसी उद्यान में पाए जाते हैं. इस अभयारण्य क्षेत्र को गोडावण की शरणस्थली कहा जाता है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9 सी के तहत गोडावण संकटग्रस्त प्रजातियों में प्रथम श्रेणी में शामिल है. इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर की संकटग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली रेड डेटा बुक में भी इन्हें 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' श्रेणी में रखा गया है.
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