आयोध्या के एकदम नए बने राम मंदिर में बालक राम की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के महज एक वाक्य ने इस घटना के युगांतरकारी स्वरूप के निचोड़ को बयान कर दिया. भावना में रुंधे गले से उन्होंने कहा, "हमारे राम लला अब टेंट में नहीं रहेंगे, वे अपने इस दिव्य मंदिर में रहेंगे." इन शब्दों ने उजाड़ तंबू से लेकर भव्य मंदिर तक जो तस्वीर मन में उकेरी, उसमें हिंदू देवकुल के सबसे श्रद्धेय देवताओं में एक का जन्मस्थान मानी जाने वाली जगह पर मंदिर के निर्माण का सदियों पुराना रक्तरंजित संघर्ष समाहित था. यह उस सांस्कृतिक पुनर्जागरण का द्योतक भी था, जिसे मोदी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसका मार्गदर्शक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) आने वाले महीनों और वर्षों में देश में अपनी जमीन बढ़ाने और फैलाने की उम्मीद कर रहे हैं. भारत के हिंदू बहुसंख्यकों के बीच इस घटना से उत्पन्न भावनात्मक जुड़ाव का तो जिक्र ही क्या, जो जानकारों के अनुसार, 2024 की गर्मियों में होने वाले आम चुनाव में स्पष्ट बहुमत के साथ लगातार तीसरा कार्यकाल हासिल करने की भाजपा की कोशिश में चार चांद लगा देगा.
मोदी अलबत्ता हिंदू पुनर्जागरण और पुनरुत्थान के इस शानदार प्रदर्शन के प्रस्तावक, संवाहक और मुख्य यजमान (संरक्षक) बने रहेंगे. जैसी कि उनकी फितरत है, इस लम्हे के बारे में हर चीज सर्वोत्कृष्ट ढंग से संयोजित की गई थी. अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और संघ परिवार के उस जबरदस्त दबाव का प्रतिरोध किया, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना मंदिर निर्माण की खातिर अध्यादेश जारी करने के लिए उन पर डाला जा रहा था. सुप्रीम कोर्ट 2010 से ही अयोध्या जमीन विवाद के उस मामले की सुनवाई कर रहा था, जो उसके वादियों ने दायर किया था. इन वादियों ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के उसी साल दिए गए उस फैसले के खिलाफ अपील की थी जिसने 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया था - दो हिस्से हिंदू संगठनों को और एक हिस्सा इसमें शामिल मुस्लिम संगठनों को. मगर मोदी ने आरएसएस से साफ कह दिया कि समाधान भारतीय संविधान के दायरे में ही खोजा जाएगा-यानी न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही.
तैयारी की गहमागहमी
This story is from the February 07, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the February 07, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
बिसात का नया बादशाह
सत्रह साल के डी. गुकेश कैंडीडेट्स चेस टूर्नामेंट जीतने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने
तवायप की लाहौरी दुनिया का नायाब अफसाना
यह एक नितांत भव्य, महंगा, महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है या फिर संजय लीला भंसाली का दुनिया को उपहार? आजादी के दौर के लाहौर की छह तवायफों की इस गाथा के नेटफ्लिक्स पर रिलीज होते ही दर्शक हुए दीवाने
नेताजी...नहीं, चुनाव लड़ेंगे बेटीजी-बेटाजी
बिहार में बड़े नेताओं के छह बच्चों समेत 28 खानदानी प्रत्याशी मैदान में. कइयों ने टिकट मिलने से ठीक पहले पार्टियों की सदस्यता ली. तो क्या चुनावी टिकट नेताओं के परिजनों को ही मिला करेंगे और कार्यकर्ता सिर्फ दरियां बिछाया करेंगे?
सुरक्षित सीटों पर युवा दांव
यूपी में राजनैतिक दलों ने आरक्षित लोकसभा सीटों पर उतारे नए युवा उम्मीदवार, ज्यादातर अपने पिता की सियासी विरासत के सहारे चुनाव मैदान में
तेजस्वी की पहले से पुख्ता पकड़
बिहार का सियासी माहौल बेहद गरम. यहां राजद प्रमुख ने युवाओं से जुड़े मुद्दों को प्रधानमंत्री मोदी की अपील और नीतीश कुमार पर बुरी तरह आश्रित भाजपा से मुकाबले में औजार बनाया. नीतीश तो पुराना रुतबा गंवा ही चुके
कांग्रेस का अकेला सिपहसालार
अधीर रंजन चौधरी के कांग्रेस के गढ़ - मुर्शिदाबाद - में भाजपा और टीएमसी सेंध लगाने का कर रहीं प्रयास
मजबूती से मोर्चा संभालतीं ममता
भाजपा ने भ्रष्टाचार और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को बुरी तरह घेर रखा है. लेकिन ममता भी पूरी मजबूती से मोर्चे पर डटी हैं और उनकी पार्टी यह नैरेटिव गढ़ने में जुटी है कि भगवा पार्टी 'बंगाली विरोधी' है
कौन जीतेगा यह महायुद्ध?
महाराष्ट्र में अब तक की सबसे पेचीदा सियासी जंग में वोटों की तलाश करते दुल-मुल गठबंधन सत्ता संघर्षों और विश्वासघातों की दिलचस्प महागाथा रच रहे हैं
करो या मरो की जंग
महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार के इलाकाई क्षत्रप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सियासत इतिहास गढ़ने के रास्ते में खड़े हुए हैं. अगर क्षत्रप उन्हें हराने में नाकाम हुए तो वे अपना राजनैतिक महत्व गंवा देंगे
कैसे शुरू हुई कलह
कांग्रेस डेढ़ दशक बाद दिल्ली में लोकसभा चुनाव में खाता खुलने की उम्मीद कर रही है, लेकिन इससे पहले अंदरूनी कलह से उसकी मुश्किलें बढ़ीं