उन के बड़े भाई, वरिष्ठ दादाजी, जैसा कि हम उन्हें बुलाते थे, उन्हें घूर कर देखते थे, क्योंकि वे तीन साल बड़े थे और स्वतंत्र राष्ट्र में पैदा नहीं में हुए थे, इसलिए वह दादाजी को इस तरह अपने जन्मवर्ष के बारे में डींगें मारते हुए सुन कर थक गए थे.
“क्या दादाजी के जन्म वर्ष की हवा अलग थी?" मालती ने मासूमियत से पूछा, “तो क्या उन का आजादी से कोई लेनादेना नहीं था?”
वरिष्ठ दादाजी ने हंसते हुए कहा, "हां, वह तब सिर्फ एक नवजात शिशु था.”
“लेकिन हां, आजादी की खुशबू के साथसाथ हवा ताजी थी, जैसा कि हमारे पिताजी तब कहा करते थे. उस साल बहुत सारी गौरैया और कबूतर थे, मुझे याद है कि हमारी मां ऐसा कहती थीं,” उन्होंने एक छोटी सी मुसकान के साथ कहा.
इतने में दादाजी की टोली वहां आ गई और वे सभी एकसाथ पार्क में चले गए. मोहित, मालती और रौबी ने उन का पीछा किया.
वे स्वतंत्रता सेनानियों और स्वतंत्रता संग्राम के बारे में और अधिक जानना चाहते थे. मोहित ने इतिहास में महात्मा गांधी, भगतसिंह, जवाहर लाल नेहरू और सरोजिनी नायडू के बारे में सबकुछ पढ़ा था.
लेकिन मालती और रौबी को कुछ भी मालूम नहीं था और अगर मोहित उन्हें बताता कि उन के बीच तलवारबाजी और न जाने क्याक्या हुआ. तो मालती और रौबी उस पर भरोसा कर लेते.
फिर उस ने हैरानी के साथ सोचा, 'तलवारों से लड़ाई हो रही थी.'
दादाजी ने उन्हें दांडी मार्च नामक एक महत्त्वपूर्ण घटना के बारे में बताना शुरू किया, "ब्रिटिश सरकार ने कई नियम बनाए थे और हमें उन के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना पड़ता था.
वे नियम कठोर थे और उन के फायदे के लिए थे. कल्पना कीजिए, अगर कोई आए और आप के सभी रिमोट और वीडियो गेम उठा कर ले जाए तथा आप के स्थान पर खुद खेलना शुरू कर दे, तो आपको कैसा महसूस होगा?”
“मुझे तो इस से नफरत होगी,” रौबी ने कहा, उस के गाल लाल हो गए थे.
“गांधीजी को ऐसा ही महसूस हुआ. उन्होंने बहुत सोचा और फैसला किया कि उन का देश स्वतंत्र और शांतिपूर्ण हो. क्या यह संभव था? कुछ लोगों को संदेह था, लेकिन ज्यादातर लोगों ने उन पर और उन के दृष्टिकोण पर विश्वास किया और उन का समर्थन किया."
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